पहाड़ न चढ़ने पर अड़े शिक्षक अब “निःशंक”की शरण में..
जागो ब्यूरो रिपोर्ट:
वर्ष 2016-17 में हरीश रावत सरकार का कार्यकाल खत्म होने और विधानसभा चुनाव आचार संहिता लगने के दौरान पहाड़ से मैदान स्थानांतरित हुये 450 शिक्षक किसी भी सूरत में पहाड़ चढ़ने को तैयार नहीं है,वर्तमान सरकार के दौरान इनके तबादलों को निरस्त कर दिया गया था और इनको मूल विद्यालयों में वापस जाने के निर्देश दिये गये थे, जिससे बचने के लिये इन्होंने सबसे पहले उत्तराखण्ड हाइकोर्ट में गुहार लगायी,जँहा से इन्हें निराशा ही हाथ लगी
अब ये शिक्षक लगातार राजनैतिक संरक्षण के चलते मैदानी इलाकों में ही डटे हुये हैं और उत्तराखण्ड के कई विधायकों और मन्त्रियों से पत्र लिखवाकर शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों पर दवाब बनाकर मामले को लटकाये हुये हैं,ऐसे ही शिक्षकों की वजह से पहाड़ के स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं और बच्चे और अभिवावक शिक्षकों की तैनाती को लेकर लगातार सरकार से विभिन्न माध्यमों से गुहार भी लगा रहे हैं, यदि देखा जाय तो पहाड़ से मैदान की ओर पलायन की मूल वजह भी पहाड़ों के स्कूलों में अध्यापकों की कमी की वजह से चरमरायी हुयी शिक्षा व्यवस्था ही है,इन 450 शिक्षकों ने पहाड़ न चढ़ने से बचने के लिये कुछ दिन पूर्व यमुनोत्री विधायक केदारसिंह रावत से पैरवी करवायी
तो अब “जागो उत्तराखण्ड” को सूत्रों के हवाले से पुख्ता जानकारी मिली है, कि अब ये मानव संसाधन विकास मन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल “निशंक” के पास जाकर उत्तराखण्ड सरकार के शिक्षा मन्त्री अरविंद पाण्डेय पर दवाब बनाने का प्रयास कर रहे हैं,जबकि शिक्षा मन्त्री अरविंद पाण्डेय ने बीते दिनों सम्पन हुयी शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक में स्पष्ठ कर दिया है कि इन शिक्षकों को वापस पहाड़ में भेजा जायेगा, जो कि पहाड़वासियों के लिये सुखद ख़बर है,अब उम्मीद ये है कि निःशंक के दरबार से भी इन्हें निराशा ही हाथ लगेगी,क्योंकि निःशंक खुद पहाड़ से पढ़े-बढ़े हैं और पहाड़ के शिक्षकविहीन विद्यालयों से पहाड़वासियों को हो रही भारी परेशानियों से भली भाँति वाकिफ़ भी हैं।