रियो-डी-जिनेरियो प्रजाति के अदरक बीज के नाम से वितरित कर बीस वर्षों से चल रहा है फर्जीवाड़ा..

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उद्यान विभाग द्वारा सामान्य किस्म के अदरक को रियो-डी-जिनेरियो प्रजाति के अदरक बीज के नाम से वितरित कर बीस वर्षों से चल रहा है फर्जीवाड़ा..

डा० राजेंद्र कुकसाल
कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ
मो०- 9456590999

 

उत्तराखण्ड का उद्यान विभाग प्रत्येक वर्ष विभिन्न योजनाओं में दस से पन्द्रह करोड़ रुपए का सामान्य अदरक,बीज के नाम पर कृषकों को अनुदान स्वरूप बांटता है।सामान्य किस्म के अदरक को रियोडीजैनरो किस्म बता कर विगत बीस बर्षो से अदरक बीज के नाम पर कृषकों के साथ छलावा किया जा रहा है।विभाग द्वारा योजनाओं में गाइडलाइंस का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।योजनाओं में गुणवत्ता बनाए रखने हेतु सभी निवेश यथा बीज,दवा,खाद आदि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय,कृषि शोध केन्द्रों,भारतीय एवं राज्य बीज निगमों से क्रय करने के निर्देश दिए गए हैं।किन्तु विभाग द्वारा ऐसा नहीं किया जाता।योजनाओं में भ्रष्टाचार रोकने तथा पार -दर्शिता के उद्देश्य से कृषकों को मिलने वाला अनुदान डीबीटी के माध्यम से कृषकों के खाते में जमा करने का प्रावधान है।किन्तु विभाग में ऐसा नही होता है।

अदरक की उन्नत किस्मों के बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं-
1-आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र, केरल ।
2-कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा।
3- डा० वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर , नौणी सोलन, हिमांचल प्रदेश।

किन्तु ,उद्यान विभाग योजनाओं में आवंटित धन से टेंडर प्रक्रिया दिखाकर निम्न स्तर का अदरक कभी फ्रुट फैड हल्द्वानी,कभी तराई बीज निगम कभी समितियों के बिलों पर दलालों के माध्यम से विगत बीस बर्षो से क्रय करता आ रहा है,ये फर्में मूल उत्पादक फर्में नहीं होती।इस खरीद में सीड एक्ट का भी पालन नहीं किया जाता।अदरक उत्पादकों को अदरक बीज उत्पादन में योजनाओं से लाभान्वित कर आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास भी नहीं किए गए।

समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया में समय-समय पर कृषकों द्वारा समय पर अदरक बीज न मिल पाने साथ ही खराब अदरक बीज की शिकायतें छपती रहीं हें।
अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते है तो, विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर या बीज आपूर्तिकर्ता को ब्लैकलिस्ट कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है।

एक रिपोर्ट….

राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में,नगदी फसल के रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है।विभागीय आकडों के अनुसार उत्तराखण्ड में 4876 हैक्टयर क्षेत्रफल में अदरक की कास्त की जाती है,जिससे 47120 मीट्रिक टन का उत्पादन होता है। टेहरी जनपद में 2019 – 20 में 1490 हैक्टेयर क्षेत्रफल में अदरक की कास्त की गयी,जिससे 14872 मीट्रिक टन अदरक उत्पादन प्राप्त हुआ। विभागीय आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 से 2020 तक अदरक उत्पादन में कोई भी बढ़ोतरी नहीं दर्शायी गई है,जिसका मुख्य कारण समय पर उच्च गुणवत्ता का अदरक बीज न मिल पाना है, जबकि विभागीय योजनाओं में अदरक बीज खरीद में धनराशि सैकड़ों गुना बढ़ा दी गई है।

हिमांचल प्रदेश की तरह राज्य में कभी भी अदरक बीज उत्पादन के प्रयास नहीं किए गये..

अदरक की उन्नत किस्मों के बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं-

1-आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र, केरल ।

2-कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा।

3- डा० वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर , नौणी सोलन, हिमांचल प्रदेश ।

उद्यान विभाग विगत 20 – 30 वर्षों से पूर्वोत्तर राज्यों असम ,मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से सामान्य किस्म के अदरक को प्रमाणित / Truthful बीज के नाम पर रियो-डी-जिनेरियो किस्म बता कर 10 से 15 करोड़ ₹ रुपये का अदरक प्रति वर्ष क्रय कर राज्य के कृषकों को योजनाओं में आधी कीमत या मुफ्त में अदरक बीज के नाम पर बाँटता आ रहा है ।

अदरक बीज के आपूर्ति करने वाले (दलाल) पूर्वोत्तर राज्यों की मंडियों से 10-15 रुपये प्रति किलो की दर से क्रय करते हैं तथा अदरक बीज के नाम पर उद्यान विभाग 80 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से इन दलालों के माध्यम से क्रय कर,राज्य में कृषकों को योजनाओं के अन्तर्गत वितरित करता आ रहा है,जिस पर 50 -70 प्रतिशत का अनुदान राज्य सरकार द्वारा दिया जाता है।

अदरक बीज की खरीद पर कई वार सवाल उठे हैं तथा विवाद भी हुए हैं,पूर्ववर्ती सरकार में भी अदरक बीज खरीद प्रकरण खूब चर्चाओं में रहा। समय समय पर जब अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते हैं,तो विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर या बीज आपूर्तिकर्ता को ब्लैकलिस्ट कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है।

अदरक बीज आपूर्ति कर्ता / ठेकेदार( दलाल ) न तो अदरक बीज उत्पादक होते हैं और न ही किसी बीज आपूर्ति करने वाली कंपनी/ फर्म के अधिकृत विक्रेता!संपरीक्षा /Audit से बचने के लिये इनके पूर्व में इन दलालों द्वारा फ्रुटफैड हल्द्वानी नैनीताल या अन्य सहकारिता समितियों के बिल का प्रयोग किया जाता था,जिस पर बीज आपूर्ति करने वाले इन समितियों को 5 – 10 % तक कमीशन देते थे,ये समितियां न तो अदरक उत्पादक होते हैं और न ही बीज आपूर्ति करने वाली संस्था। इस प्रकार अदरक बीज क्रय में /Seed act/उत्तराखण्ड पर्चेज रूल्स दोनों का उल्लघंन किया जाता रहा है ।समितियां के माध्यम से क्रय करने पर जब सवाल उठने लगे तो वर्तमान में टैन्डर प्रक्रिया से अदरक बीज क्रय किया जाने लगा।भारत सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार योजनाओं में क्रय किए जाने वाला बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद,कृषि शोध संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय , केन्द्र या राज्य के बीज निगमों से ही क्रय करने के निर्देश है,किन्तु उत्तराखण्ड में ऐसा नहीं होता अधिकतर बीज कमीशन के चक्कर में निजी कम्पनियों या दलालों के माध्यम से ही क्रय किए जाते हैं।कृषकों को योजनाओं का सीधा लाभ मिल सके,इसके लिये भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने अपने पत्रांक कृषि भवन,नई दिल्ली दिनांक फरवरी,28 2017 के द्वारा कृषि विभाग की योजनाओं में कृषकों को मिलने वाला अनुदान डी.बी.टी. के अन्तर्गत सीधे कृषकों के खाते में डालने के निर्देश सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के कृषि उत्पादन आयुक्त, मुख्य सचिव, सचिव एवं निदेशक कृषि को किये गये,लेकिन कृषकों को योजनाओं में मिलने वाले अनुदान का डी०बी०टी० के माध्यम से भुगतान सम्बन्धित भारत सरकार के आदेशों का भी अनुपालन नहीं हो रहा है।उत्तरप्रदेश,हिमांचल आदि सभी राज्यों में वर्ष 2017 से ही कृषकों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान डी.बी.टी के माध्यम से सीधे कृषकों के खाते में जा रहा है। इन राज्यों में पंजीकृत/चयनित कृषक भारत सरकार/राज्य सरकार के संस्थानो /पंजीकृत बीज विक्रेता जो कृषि विभाग से पंजीकृत हों, स्वेच्छानुसार एम.आर.पी से अनधिक दरों पर नगद मूल्य पर क्रय कर क्रय रसीद सम्बंधित विभाग से भुगतान प्राप्त करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है, सत्यापन के बाद धनराशि कृषकों के बैंक खातों में विभाग द्वारा डाल दी जाती है।अधिकतर अदरक उत्पादकों का कहना है कि स्थानीय उत्पादित अदरक बोने पर उपज ज्यादा अच्छी होती है, विभाग द्वारा प्रमाणित बीज के नाम पर दिये गये अदरक बीज में बीमारी अधिक लगती है साथ ही उपज भी कम होती है।
अदरक उत्पादित क्षेत्रों में सहकारिता समितियाँ बनी हुई हैं , जिनका मुख्य कार्य अदरक का विपणन करना है। ये समितियाँ कास्तकारौ से 15/20 रुपया प्रति किलो अदरक खरीद कर उसे 30/40 रुपया प्रति किलो की दर से मंण्डियों में बेचते हैं।
यदि जनपद स्तर पर स्थानीय समितियों से ही यहां के उत्पादित अदरक को विभाग उपचारित कर अदरक बीज के रूप में खरीद कर योजनाओं में कास्तकारों को उपलब्ध कराये,तो इससे दोहरा लाभ होगा,एक तो कास्तकारों को समय पर अच्छी गुणवत्ता का बीज उपलब्ध होगा,साथ ही कास्तकारों को अदरक के अच्छी कीमत भी मिलेगी।टिहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत ,आगराखाल के अदरक उत्पादकों ने स्थानीय अदरक बीज से उत्पादन कर इस वर्ष माह अगस्त में ही एक करोड़ से अधिक का अदरक बेच दिया। इस क्षेत्र के कृषक कई दशकों से अदरक की व्यवसायिक खेती करते आ रहे हैं।धमांदस्यू,दोणी व कुंजणी पट्टी के कसमोली,आगर, सल्डोगी, द्यूरी, कुखुई, चल्डगांव, कटकोड़, नौर, बसुई, पीडी, मठियाली, तिमली, मुंडाला, ससमण, बेराई, बांसकाटल, कोटर, रणाकोट, कुखेल, खनाना, जयकोट, जखोली, मैगा,लवा, तमियार गांवों के कृषक अदरक उत्पादन करते हैं।अधिकांश प्रगतिशील कृषक स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज से ही अदरक का उत्पादन करते हैं, स्थानीय बीज की मांग अधिक रहती है ,किन्तु उतनी मात्रा में अदरक बीज उत्पादन नहीं हो पाता कृषकों का कहना है कि उद्यान विभाग द्वारा अदरक का बीज समय पर नहीं मिलता,इस क्षेत्र में अदरक बीज की बुआई फरवरी में हो जाती है,जबकि विभाग द्वारा अदरक बीज की आपूर्ति माह अप्रैल-मई तक हो पाती है,तब तक बहुत देर हो चुकी होती है,साथ ही विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज बोने पर कई तरह की बीमारियों व कीट खड़ी फसल पर लगते हैं ।

अदरक उत्पादित क्षेत्रों में कुछ काश्तकार स्वयंअदरक का बीज उत्पादित करते हैं,टिहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगरा खाल , कस्मोली ,आगर आदि ग्राम सभाओं के अदरक उत्पादकों के साथ मैंने स्वयं वैठक की,जिसमें हरियाली ग्रामीण कृषक श्रमिक सहकारी समिति के अध्यक्ष हरीश चंद्र रमोला,ग्रामीण श्रमिक कृषक कल्याण सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष कुँवर सिंह रावत व अन्य कृषकों ने भाग लिया स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज की माँग काफी रहती है।

जनपद के विकास नगर व सहसपुर क्षेत्रों में 26 अक्टुबर 2020 को पुराने सहयोगियों जगत राम सेमवाल,प्रभारी उद्यान सचल दल केन्द्र लांघा एवं इन्दु भूषण कुमोला प्रभारी उद्यान सचल दल केन्द्र विकास नगर के सहयोग से लांघा एवं भाटोवाली क्षेत्र के किसानों द्वारा अदरक बीज उत्पादन प्रक्षेत्र का भ्रमण तथा कुछ अदरक बीज उत्पादकों शान्त सिंह, श्रीचन्द,फागुन सिंह, भान सिंह,संदीप चौहान आदि से वार्ता की।

इन क्षेत्रों में किसानों द्वारा, परंम्परागत रूप से दशकों से अदरक बीज का उत्पादन किया जा रहा है। क्षेत्र के अदरक बीज उत्पादकों का कहना था कि पहले हिमांचल से अदरक का बीज लाते थे या अपना उत्पादित किया हुआ अदरक ही बोते थे,जिससे उपज अच्छी मिलती थी,जब से योजनाओं का बीज बोना शुरू किया कई तरह की बीमारियों खेतों में आ गयी हैं,जिससे उपज काफी कम हो गई है जिसकारण वर्तमान में अदरक उत्पादन क्षेत्र में कम हो रहा है।

चम्पावत: जिले के 25 सीमांत गाँवों में भारत सरकार की समेकित सहकारी विकास योजना के अंतर्गत 12 बहुद्देशीय सहकारी समितियों के माध्यम से स्थानीय अदरक उत्पादकों से अदरक बीज उत्पादन कराया जा रहा है। वर्तमान में 200 एकड़ भूमि में एक हजार कुंतल अदरक की बुवाई कराई गई है,जो कि एक शानदार पहल है। इस कार्य में डा. परमार बागवानी विश्व विद्यालय नौणी सोलन हिमाचल प्रदेश के बैज्ञानिकों का भी सहयोग लिया जा रहा है।योजनाओं में जब तक कृषकों के हित में सुधार नहीं किया जाता व क्रियावयन में पारदर्शिता नहीं लायी जाती कृषकों को योजनाओं का पूरा लाभ मिलेगा सोचना बेमानी है।उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आबंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ।राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।
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अदरक बीज पर समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरें—

ऐसे तो लग जाएगा अदरक की खेती पर ब्रेक..

ब्यूराे/अमर उजाला, चंपावत Updated Tue, 17 May 2016 10:17 PM IST

सूखे की मार झेलने वाले किसानों के लिए अदरक की खेती एक उम्मीद थी और इसी उम्मीद पर उन्होंने अदरक लगाने के लिए खेत तैयार किए,लेकिन सरकारी बीज की कमी से ये भी नाउम्मीदी में बदल रही है।उन्हें जरूरत भर के लिए भी बीज नहीं मिल पा रहा है, मिल भी रहा है तो अधिक रकम खर्च करनी पड़ रही है।
पहले तो उद्यान विभाग समय पर बीज उपलब्ध नहीं करा पाया और जब दस दिन पहले बीज आए भी, तो कम मात्रा में मिले। डिमांड 290 क्विंटल की थी, लेकिन मिला महज 116 क्विंटल। इस कारण किसानों को जरूरत के हिसाब से बीज नहीं मिल सके। विभागीय बीज 30 रुपये और बाजार का बीज 55 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिल रहा है। विभागीय बीज की प्रामाणिकता भी अधिक होती है। पिछले साल जिले को 300 क्विंटल बीज 35.40 रुपये की दर से मिला था। अदरक की फसल जिले की प्रमुख नकदी फसल है। करीब 304 हेक्टेयर क्षेत्र में अदरक की बुवाई होती है। पिछले साल 2349 क्विंटल अदरक का उत्पादन हुआ।

बाजार में ढाई हजार रुपये महंगा है बीज!..

किसानों का कहना है कि पर्याप्त मात्रा में बीज नहीं मिलने से दिक्कत आ रही है। किसानों ने उद्यान विभाग के बीज का इंतजार किया। मजबूर होकर बाजार से बीज खरीदा,मगर यह बीज विभागीय बीज से करीब 2500 रुपये क्विंटल अधिक कीमत का है।15 अप्रैल से करीब एक माह तक बुवाई का उपयुक्त समय होता है।
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तो तोड़ लेंगे अदरक की खेती से नाता..
किसान ध्यान सिंह, गौरी दत्त, गिरधारी, हेतराम आदि का कहना है कि अदरक की फसल इलाके की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाती थी। घर-गृहस्थी का खर्चा इससे निकल जाता था। सूखे के बाद अब वक्त पर बीज नहीं मिलने से उनकी उम्मीदों पर पानी फिरा है। अगर हालात ऐसे ही रहे, तो वे अदरक की खेती से नाता तोड़ने को मजबूर होंगे।

चंपावत जिले के लिए 290 क्विंटल अदरक के बीज की मांग की गई थी, मगर इसके सापेक्ष जिले में मात्र 40 प्रतिशत बीज ही मिल सके हैं। इस बीज को पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर बांटा गया, लेकिन कम बीज के चलते एक किसान को अधिकतम 20 किलोग्राम बीज ही दिया गया।

-जिला उद्यान अधिकारी, चंपावत।
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जागरण—
आठ साल में सिर्फ दो बार ही पूरा मिला अदरक
Publish Date:Mon, 21 Jan 2019 08:08 PM (IST)

राज्य ब्यूरो, देहरादून

मंशा किसानों को वक्त पर खाद-बीज मुहैया कराकर उत्पादन में बढ़ोतरी की और सिस्टम का हाल यह कि वह वक्त पर बीज ही मुहैया नहीं करा पा रहा। उत्तराखण्ड में किसानों को अदरक का शोधित बीज मुहैया कराने के मामले में तस्वीर कुछ ऐसी ही है। 2010 से शुरू की गई इस पहल के दरम्यान अब तक केवल दो बार ही राज्य में अदरक बीज की पूरी आपूर्ति हो पायी। उस पर हैरानी की बात ये कि इस बेपरवाही के लिए किसी को जिम्मेदार भी नहीं ठहराया गया। ऐसे में अदरक को आर्थिकी से कैसे जोड़ा जाएगा, स्वत: ही अंदाज लगाया जा सकता है।

राज्य में 4822 हेक्टेयर क्षेत्र में अदरक की खेती होती है, जिसमें पर्वतीय जिले मुख्य हैं।उत्तराखण्ड बनने के बाद प्रदेश में उद्यान विभाग की ओर से अदरक का बीज पूर्वाेत्तर समेत अन्य राज्यों से मंगाकर किसानों को दिया जाता था। उत्पादन बढ़ाने के मद्देनजर 2010 में किसानों को अदरक का शोधित बीज मुहैया कराने की पहल की गई। तब उत्तर प्रदेश फल एवं भेषज सहकारी संघ के माध्यम से अदरक बीज की पाँच हजार कुन्तल और हल्दी के 2700 कुन्तल बीज की आपूर्ति की गई।

सूत्रों के अनुसार इसके अगले वर्ष से टेंडर प्रक्रिया के जरिये फर्माें को आमंत्रित कर इनके माध्यम से शोधित बीज देने का निर्णय लिया गया, लेकिन 2016 तक कभी भी सप्लाई पूरी नहीं की गई। हर बार ही बीज की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे। यही नहीं, कई मर्तबा संबंधित फर्म शर्तें पूरी नहीं कर पाई। बाद में इनमें कुछ ढील दी गई और 2017 में जिस फर्म के नाम यह टेंडर छूटा, उसने अदरक व हल्दी की पूरी आपूर्ति की। इससे उम्मीद बंधी कि व्यवस्था सुधरेगी, लेकिन 2018 में 2700 कुंतल के सापेक्ष 1600 कुंतल बीज की आपूर्ति हो पाई।

हालांकि, उद्यान महकमे ने इस वर्ष के लिए अभी से प्रयास शुरू किए। चार जनवरी को इसके लिए टेंडर आमंत्रित किए गए, मगर इसमें केवल दो फर्में ही आई। तीन से अधिक फर्म के नियम के चलते इसे निरस्त करना पड़ा। 16 जनवरी को दोबारा टेंडर आमंत्रित किए गए, मगर इसमें एक ही फर्म आई। नतीजतन इसे भी निरस्त कर दिया गया।

उधर, उद्यान निदेशक आर.सी श्रीवास्तव ने माना कि पूर्व के वर्षाें में कुछ कठिनाइयां थीं,मगर अब प्रोक्योरमेंट नियमावली के तहत ही टेंडर आमंत्रित कर उच्च गुणवत्ता का अदरक व हल्दी का शोधित बीज मुहैया कराने का प्रयास किया जा रहा है।उन्होंने बताया कि गत वर्ष बाद में डिमांड कम होने के कारण आपूर्ति कम हुई। इस वर्ष विभाग ने जनवरी से ही टेंडर प्रक्रिया शुरू की है,ताकि वक्त पर किसानों को बीज मिल सके। तीसरी बार जल्द ही टेंडर आमंत्रित किए जाएंगे। कोशिश है कि फरवरी मध्य से किसानों को बीज मिलने लगें।

अप्रैल तक होती है बुआई..

राज्य के पर्वतीय जिलों में ही मुख्य रूप से अदरक और हल्दी की खेती होती है। इसकी बुआई का समय फरवरी मध्य से अप्रैल तक होता है।

नहीं मिल रहा ‘रियो डी-डिजिनेरियो’..

अदरक की ‘रियो- डी-डिजिनेरियो’ प्रजाति को राज्य के लिए बेहतर मानते हुए विभाग इसे प्रोत्साहित कर रहा है। इस पर तुर्रा ये कि पर्याप्त आपूर्ति के लिए इसका बीज ही नहीं मिल पा रहा।
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रुद्रप्रयाग:
किसानों को नहीं मिला बुआई के लिए हल्दी और अदरक..

हिन्दुस्तान टीम,रुद्रप्रयाग

Updated: Sat, 05 May 2018 02:47 PM IST

बीते दो महीने से खेतों में अदरक और हल्दी लगाने के इच्छुक किसानों को अब तक बीज नहीं दिया गया है, जिससे वह खेती तैयार कर सके। किसानों ने कहा कि दो महीने में भी उन्हें हल्दी और अदरक की रोपित की जाने वाली जड़ नहीं दी गई, जिससे उनके सामने दिक्कतें आ गई हैं। जबकि उन्होंने अपने खेत भी तैयार किए हैं।प्रगतिशील किसान विनोद डिमरी ने बताया कि पूर्व में प्रशासन और कृषि एवं उद्यान विभाग ने किसानों को अदरक और हल्दी का बीज देने का आश्वासन दिलाया। इस फसल के लिए मार्च और अप्रैल सबसे अच्छा महीना है, किंतु मई शुरू होने के बाद भी अब तक किसानों को हल्दी और अदरक बुआई के लिए नहीं मिल पाया है। उन्होंने कहा कि अकेले रुद्रप्रयाग में ही 20 कुन्तल से अधिक डिमांड है। इधर,अन्य इच्छुक किसानों ने भी कहा कि उन्हें बुआई के लिए अदरक और हल्दी नहीं दी गई है जबकि उन्होंने अपने खेत इसके लिए खाली रखे हैं। डीएम मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि यदि किसानों को जरूरत पर बीज, दवा आदि उपलब्ध नहीं कराए गए तो संबंधित विभाग के खिलाफ कार्यवाही की जायेगी।
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टिहरी जनपद,आगराखाल के सुरेन्द्र सिंह कन्डारी जी का खराब अदरक बीज के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री जी से अनुरोध- दिनांक 18 अगस्त 2021..

आदरणीय
पुष्कर सिंह धामी जी ,माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार…
महोदय,
निवेदन है कि आगराखाल क्षेत्र अदरक उत्पादन के लिए अपना विशेष महत्व रखता है!विगत कई वर्षों से कृषि विभाग द्वारा ग्रामीणों को उपलब्ध कराए जाने वाला अदरक बीच बेहद घटिया गुणवत्ता का है,कृषि विभाग अदरक बीज माफियाओं के चंगुल में उलझा हुआ है कृपया संज्ञान लें।
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26 अगस्त 2021
श्री राजेश पाण्डेय,वरिष्ठ पत्रकार की एक रिपोर्ट के कुछ अंश-

खेतू के खेतों में ही सड़ गई अदरक, सरकार को नहीं देता सुनाई..

टिहरी गढ़वाल के खेतू गाँव में इस बार अदरक की फसल खेतों में ही सड़ गई। पूरी फसल पीली पड़ गई। हर साल अदरक की फसल से उम्मीद बांधने वाले लघु किसान त्रिलोक सिंह बहुत निराश हैं। अब उनके सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि बीज खरीद के लिए लिया गया लोन कैसे चुकाएंगे।त्रिलोक बताते हैं कि पहले भी अदरक की फसल खराब हुई थी। कुमाल्डा में उद्यान विभाग, को बताया है, पर सुनवाई कहां होती है। बीज हमने उन्हीं से खरीदा था। विभाग ने बीज का पैसे ले लिया, अब उनको क्या मतलब।

” अदरक की खेती पर लगभग 24 हजार रुपये खर्च किए, जिस पर उम्मीद थी कि करीब 50 हजार रुपये की फसल मिल जाएगी। अदरक की खेती में काफी मेहनत लगती है। मैंने बैंक से कृषि कार्ड पर 30 हजार का लोन लिया था, जिसे चुकाना चुनौती है। यह लोन एक साल के भीतर चुकाना है।” अदरक के बर्बाद हो चुके खेत को देखते हुए त्रिलोक ने बताया।किसान बता रहे हैं कि अधिकारी-कर्मचारी उनकी बात नहीं सुन रहे हैं, तो यह बहुत खराब स्थिति है। किसान विभाग के पास नहीं तो अपनी बात किससे पास पहुंचाएंगे।

असम के अदरक का बीज लेने से काश्तकारों का इनकार
देहरादून ब्यूरो..
काश्तकारों को बाहर से आयात कर थोप रहा अदरक का बीज..

उद्यान विभाग अदरक बीज को लेकर उत्पादकों के मन की बात नहीं सुन पा रहा है। अच्छे उत्पादन के लिए काश्तकारों में स्थानीय बीज की डिमांड है, लेकिन विभाग लोकल फॉर वोकल के बजाए उत्पादकों को असम व अन्य राज्यों से आयात बीज थोप रहा है। जिससे लोकल बीज को प्राथमिकता देने वाले जिले के अधिकतर काश्तकारों को बीज पर मिलने वाली सब्सिडी के लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है। साथ ही काश्तकारों का कहना है कि बाहरी राज्यों के बीज पर कीड़ा भी जल्द लगता है।जिले के आगराखाल, कुंजणी, धमांस्यूं, दोगी पट्टी, क्वीली,कुमाल्डा,मरोड़ा और कीर्तिनगर क्षेत्र में नकदी फसल अदरक की अच्छी खासी पैदावार होती है। अकेले आगराखाल क्षेत्र में ही प्रतिवर्ष सात से आठ करोड़ रुपये के अदरक का व्यापार होता है। अब मार्च-अप्रैल से अदरक की बुआई शुरू होती है, लेकिन उद्यान विभाग काश्तकारों की मांग के अनुरूप उन्हें स्थानीय अदरक बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। जिससे उत्पादक खासे निराश हैं। अदरक उत्पादक पुष्कर सिंह रावत, प्रवीन रमोला और मदन चंद रमोला कहते हैं, कि स्थानीय बीज की बुआई करने से अच्छा उत्पादन मिलता है, लेकिन उद्यान विभाग दूसरे राज्यों से आयात जो अदरक का बीज देता है, उसमें अक्सर बीमारी लगती है, जिससे उत्पादन भी कम होता है। यही वजह है, कि क्षेत्र के अधिकतर उत्पादक स्थानीय बीज को ही प्राथमिकता देते हैं, जिससे उन्हें बीज पर सरकार से मिलने वाली 50 फीसदी सब्सिडी नहीं मिल पाती है। आगराखाल के काश्तकार व व्यापारी सुरेंद्र कंडारी का कहना है कि उद्यान विभाग को काश्तकारों की डिमांड के अनुरूप बीज देना चाहिए, जिससे अच्छी उपज से उन्हें मुनाफा हो सके। लेकिन वर्षों से मांग करने के बाद भी स्थानीय बीज खरीद को मान्यता नहीं दी जा रही है, जिससे लोगों को बगैर सब्सिडी का 100 से 110 रुपये प्रति किलो स्थानीय बीज खरीदना पड़ता है।

कलस्टर आधार पर नहीं होती है नुकसान की भरपाई..
अदरक की फसल का बीमा कराने पर भी काश्तकारों को नुकसान का मुआवजा नहीं मिल पाता है। विभाग नुकसान का आंकलन कलस्टर के आधार पर करता है, जबकि एक ही क्षेत्र में कहीं ज्यादा तो कहीं कम नुकसान होता है। कलस्टर के आधार पर कम ज्यादा नुकसान होने पर भी एक तरह का ही मुआवजा दिया जाता है। इससे काश्तकारों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। यही नहीं विभागीय आंकड़ों के मुताबिक टिहरी जिले में ही वर्ष 2019-20 में 1490 हेक्टेयर पर करीब 14872 मीट्रिक टन अदरक उत्पादन किया गया। जिससे स्पष्ट है, कि अदरक उत्पादन से सैकड़ों काश्तकार जुड़े हुए हैं, बावजूद अदरक का समर्थन मूल्य घोषित नहीं किया गया है।

स्थानीय अदरक बीज खरीदने के कोई निर्देश नहीं हैं। जिले से 800 क्विंटल की डिमांड मिली है। अप्रैल तक आवंटित कर दिया जाएगा। स्थानीय बीज को लेकर फेडरेशन गठन पर विचार किया जा रहा था, लेकिन वह बात आगे नहीं बढ़ पाई। बीज संरक्षण के लिए कोल्ड स्टोर भी जरूरी है।
– प्रमोद कुमार त्यागी, डीएचओ टिहरी

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