चिरयुवा रहने का औषधीय फल गूलर/भूमरो !.
डॉ कुसुम भट्ट
उत्तराखण्ड की पवित्र भूमि में अनादिकाल से ही औषधीय वनस्पतियों का भंडार है।यहां पाये जाने वाले फल-फूल,शाक- सब्जियों को औषधियों की संज्ञा दी गई है,उत्तराखण्ड में दैनिक उपयोग में लाये जाने वाले स्थानीय खाद्य पदार्थो और वनस्पतियों को देव भोज माना गया है।आज मैं बात कर रही हूं उत्तराखण्ड में बहुतायद में पाये जाने वाले फल गूलर की,गूलर का फूल देखना बड़े सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है,कहा जाता है कि इस फल के उपयोग से वृद्ध व्यक्ति भी युवा अवस्था को प्राप्त कर लेता है। उत्तराखण्ड में यह पेड़ खेतों की मेढ़ों पर अक्सर देखने को मिल जाता है,यह पेड़ ,समुद्र तल से लगभग 2000 मीटर तक की ऊँचाई पर पाया जाता है, इसका वानस्पतिक नाम फाइकस रेसीमोसा(ficus recimosa)है।
संस्कृत में इसे उदुम्बर,जन्तुफल,ययोग,हेम दुग्धा सदाफल आदि के नाम से भी जाना जाता है,वहीं हिन्दी में इसे गूलर,उमरी,उमर तूई गुल्लर आदि नामों से जाना जाता है।अँग्रेजी में इसे क्लस्टर फिज नाम से जाना जाता है।उर्दू में इसे गूलर कहा जाता है।उत्तराखण्ड में बोलचाल की भाषा में इसे भूमरो व उमरो कहा जाता है,दिखने में यह पहाड़ों में पाये जाने वाले फल तिमले की ही तरह प्रतीत होता है,परन्तु इसका आकार थोड़ा सा भिन्न होता है।इसका प्रयोग अचार सब्जी और जैम के रूप में किया जाता है,इसमें विटामिन बी-2 व प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है। उदर व मूत्र संबंधी रोगों में यह-फल बहुत ही फायदेमंद साबित होता है।इसके पेड़ के पत्ते,फल,तना,जड़,दूध सभी बहुत ही उपयोगी होते हैं।विभिन्न रोगों के निवारण के लिए इसका उपयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है,इसका प्रयोग बवासीर,मुँह का अल्सर,गंडमाला,दस्त,पेट दर्द, मूत्र रोग,डायबिटीज,ल्यूकोरिया जैसी बीमारी में किया जाता है,तो दूसरी ओर किसी भी प्रकार के घाव को सुखाने के लिए भी इसके दूध का प्रयोग होता है,रक्त विकार गर्भपात की समस्या एवं किसी भी प्रकार का बुखार आने पर या पित्त विकार व किसी भी प्रकार की शारीरिक दुर्बलता को दूर करने में भी इस फल का प्रयोग बहुत उपयोगी होता है।जँहा किसी भी फल को प्रयोग करने के बहुत सारे फायदे होते हैं,तो थोड़े बहुत नुकसान भी देखने को मिलते हैं,उसी तरह से इस फल को अधिक खाने से भी कुछ नुकसान भी होते हैं,जैसे बहुत अधिक मात्रा में इसके फलों का सेवन करने से बुखार आ सकता है,व पके फलों को बहुत ज्यादा खाने से आंतों में कीड़े होने की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है! चिकित्सकों के अनुसार गर्भवती महिलाओं को इसके पके फलों का सेवन नहीं करना चाहिये,
इस वृक्ष का आयुर्वेद में बहुत ही महत्व है,लेकिन इसके साथ ही इस वृक्ष का आध्यात्मिक क्षेत्र में भी काफी प्रयोग होता है,इसे नवग्रहों में से एक प्रमुख वृक्ष माना जाता है। पुराणों में इसे दैवीय वृक्ष माना गया है,कहा जाता है कि इस वृक्ष पर शुक्र ग्रह का अधिपत्य होता है,यह वृषभ व तुला राशि का प्रतिनिधि वृक्ष है। शुक्र ग्रह की शान्ति के लिये इस वृक्ष के पूजन का विधान भी है।इस वृक्ष के पत्ते पित्र कार्यों में व शुभ कार्यों में उपयोग में भी लाये जाते हैं।उत्तराखण्ड में यह पेड़
बहुतायात में पाया जाता है लेकिन इसके औषधीय गुणों की जानकारी के अभाव में इसके फलों का सेवन बहुत कम मात्रा में किया जाता है,जबकि यह फल पूर्णतः सुरक्षित है और मैदानी इलाकों में इस फल का ख़ूब प्रयोग किया जाता है,इस फल की पोस्टिक वैल्यू बहुत अधिक है, साथ ही इस फल की मार्केट वैल्यू भी काफ़ी अधिक है,इसे आप गूगल पर ऑनलाइन सर्च भी कर सकते हैं।नवयुवकों के द्वारा फलों को कई प्रकार से प्रयोग में लाकर रोजगार के नये विकल्प भी ढूंढे जा सकते हैं,थोड़े बहुत प्रयासों एवं जागरूकता से यह उत्तराखण्ड में काफी मात्रा में उत्पादित होने वाला यह फल प्रदेश की अर्थ व्यवस्था को मजबूत करने का एक सशक्त विकल्प बनकर सामने आ सकता है।