नेशनल फुटबालर-कोच वीरेन्द्र रावत के 21 साल के संघर्ष के बाद आख़िरकार बन पायी प्रदेश में खेल नीति!..

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नेशनल फुटबालर-कोच वीरेन्द्र रावत के 21 साल के संघर्ष के बाद आख़िरकार बन पायी प्रदेश में खेल नीति!..
जागो ब्यूरो रिपोर्ट:

उत्तराखण्ड के पूर्व प्रसिद्ध फुटबाल खिलाडी,नेशनल कोच,क्लास वन रेफरी और अनगिनत इंटर- नेशनल,नेशनल और स्टेट अवार्ड से सम्मानित वीरेंद्र रावत का प्रदेश में खेल नीति लागू करवाने का संघर्ष आखिरकार 21 साल बाद साकार हुआ है!इस अवसर पर वीरेन्द्र सिंह रावत ने सरकार का तहे दिल से धन्यवाद किया और बधाई दी,अकेले एक इंसान वीरेन्द्र सिंह रावत ने खेल नीति लागू करवाने के लिए कई वर्षो से समय समय पर अनशन,भूख हड़ताल,धरना प्रदर्शन किया और कई वर्षो से खेल नीति कैसी हो? उसके लिए दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को 21 साल मे कई बार सुझाव लिखित मे बाय हैंड और मेल के माध्यम से उपलब्ध करवाये,इन 21 सालों में बारी-बारी से पाँच साल काँग्रेस और पाँच साल बीजेपी ने शासन किया,रावत ने 10-10 साल दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के खेल मंत्रियों और मुख्यमन्त्रियों को सुझाव दिए और साथ साथ खेल संघो मे हो रहे भ्रष्टाचार से अवगत भी कराया,सच की लड़ाई और खेलों के विकास के लिये वीरेन्द्र सिंह रावत ने नौकरी छोड़ी,कर्ज लिया,जेल गये,जमीन बेची,शोषण सहा और कई बार दुश्मनों के हाथों घायल भी हुये, 21 वर्षो बाद आज भी उत्तराखण्ड से बाहर के लोग उत्तराखण्ड ओलिंपिक संघ और विभिन्न खेल संघो में एकछत्र राज कर खिलाड़ियों का शोषण कर रहे हैं,प्रदेश में किसी की भी सरकार रही हो,लेकिन किसी ने भी भ्रष्टाचार में लिप्त पदाधिकारियों पर आज तक कोई भी कार्यवाही नहीं की!रावत ने कहा कि आज 437 करोड़ की लागत से प्रदेश में दो बड़े इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम बन चुके हैं,एक देहरादून में और एक हल्द्वानी में लेकिन दोनों बंजर पड़े हैं और जो स्पोट्स हॉस्टल देहरादून, हल्द्वानी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, काशीपुर में बने हैं उन का भी बुरा हाल है।रावत ने बताया की 2020 अक्टूबर माह मे बीजेपी सरकार ने फिर से खेल नीति पर सुझाव माँगे थे,हमने सरकार को फ़िर सुझाव भेजे, उस वक़्त प्रदेश के मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र सिंह रावत थे जो चार साल छः महीने मुख्यमन्त्री रहे,उन्होंने हमारे समस्त 32 सुझाव स्वीकार किये और कैबिनेट ने खेल नीति पर मंजूरी दी,फिर तीरथ सिंह रावत मुख्यमन्त्री बने तीन माह के लिये,उन्होंने भी कैबिनेट मे खेल नीति पर मंजूरी दी,फिर एक साल में तीसरे मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी ने भी 23 नवंबर 2021 को खेल नीति को कैबिनेट मे मंजूरी मिली,रावत ने कहा कि प्रदेश की सत्ता में काबिज़ भाजपा सरकार ने ये क्या मजाक बना के रखा हुवा है,कि तीन-तीन मुख्यमन्त्री एक साल में एक खेल नीति को बार बार कैबिनेट में मंजूरी दे रहे है! खिलाड़ियों को क्यों गुमराह कर रहे हैं?आख़िरकार खेल नीति धरातल पर कब उतरेगी?

अब तीन महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं, बीजेपी ने दोबारा सत्ता मे आने के किए एक लॉलीपॉप खिलाड़ियों के लिए छोड़ दिया है,आखिरकार कब तक खिलाड़ियों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया जाएगा? आज अन्य राज्यों मे खेल नीति लागू है और वँहा के युवाओं को रोजगार,राज्य सरकार के विभिन्न विभागों मे नौकरी भी मिल रही है, नेशनल और इंटरनेशनल खिलाड़ियों को हर साल सम्मानित किया जाता है,कम उम्र के बच्चों के लिए बेहतरीन सुविधा से परिपूर्ण हॉस्टल बनाए गए हैं, खेल, शिक्षा और नौकरी दी जा रही है,सरकार का विभिन्न खेल संघो में खेलों के प्रति अच्छा तालमेल है,लेकिन उत्तराखण्ड की खेल के क्षेत्र में हालत बुरी है,वीरेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि हमें राजनीति में आने का कोई शौक नहीं था,लेकिन ज़ब हमारे साथ खेल मे गंदी राजनीति दोनों राष्ट्रीय पार्टियों ने की,तो जो हमारा बहुत बड़ा सपना था वो पूरा चकनाचूर हो गया,तब मज़बूरी मे आकर हमनें क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखण्ड क्रांति दल का दामन थामा,जिसने राज्य बंनाने मे महत्वपूर्ण निभायी और आज वो दल के केन्द्रीय अध्यक्ष खेल प्रकोष्ठ, केंद्रीय प्रचार सचिव पद पर विराजमान है और अपनी जन्मस्थली चौबट्टाखाल विधानसभा से उम्मीदवार भी हैं,रावत ने कहा हम राजनीति पूरी ईमानदारी से करेंगे, ज़ब हमने 22 सालों में राज्य के हजारों बालक- बालिकाओं का भविष्य निश्वार्थ भाव से बनाया है, तो नेता बनने पर भी पूर्ण ईमानदारी से समाज का भला करेंगे,खेल नीति ना होने से पिछले 21 सालों में खिलाडी नशे मे बर्बाद हुवा,उम्र हो गयी, आत्महत्या की,पलायन किया तथा अन्य राज्यों से खेलने को मजबूर भी हुये।आज भी हजारों खिलाडी बेरोजगारी की दंश झेल रहे हैं,रावत ने कहा कि क्यों ये नेता झूठ बोलकर गंदी राजनीति कर रहे हैं और कब तक करेंगे इसका पता नहीं!उन्होंने आगे कहा कि ज़ब तक खेल नीति धरातल पर नजर न आये तब तक जनता को सरकारों पर विश्वास नहीं करना चाहिये,खेलों में पारदर्शिता होनी चाहिए,खेल संघो पर लगाम होनी चाहिए,राज्य से बाहर के लोगों को संघो मे नहीं रखना चाहिए,संघो के पदाधिकारियों को पदों मे 4 या 8 वर्ष तक ही होना चाहिए,सरकारी कर्मचारी खेल संघो के पदों में नहीं होने चाहिये, राज्य खेल, फुटबाल को महत्व देना चाहिए,जो हमारी ऐतिहासिक धरोहर भी है,तभी उत्तराखण्ड में खेल और खिलाड़ियों का भला होगा।

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