देहरादून । स्कूल आॅफ मीडिया एण्ड कम्युनिकेशन स्टडीज दून विश्वविद्यालय एवं पब्लिक रिलेसन्स कौंसिल आॅफ इंडिया देहरादून चैपटर के अध्यक्ष डा. राजेश कुमार का कहना है कि हाल के वर्षों में भारत देश में किशोरों द्वारा इन्टरनेट आधारित सेवाओं के प्रयोग एवं उनपर उपलब्ध सामग्री के उपभोग में अतिशय वृद्धि हुई है। इन्टरनेट एण्ड मोबाइल एसोसिएशन आॅफ इंडिया एवं निल्सन के मई 2020 में प्रकाशित रिपोर्ट – “डिजिटल इन इंडिया – 2019 राउंड 2” के अनुसार भारत में 12 वर्ष की आयु से अधिक उम्र की कुल जनसंख्या का 40 प्रतिशत सक्रिय इन्टरनेट उपभोक्ता है, और इसमें 31 प्रतिशत इन्टरनेट उपभोक्ता 12-19 आयु वर्ग के हैं। स्पष्ट है कि किशोरों का एक बहुत बड़ा वर्ग इन्टरनेट आधारित सेवाओं तथा उस पर उपलब्ध विषय-सामग्री का उपभोग कर रहा है। इन्टरनेट उपभोक्ताओं का बढ़ना सुखद तथ्य है। एवं यह एक विकास का सूचक भी है। इसके कई कारणों में सस्ता, सुगम और तेज गति के डाटा सेवाओं की उपलब्धता भी है।
लेकिन यह स्थिति कई सामाजिक चुनौतियों को भी सामने ला रही है। हाल के दिनों में बिहार राज्य के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इन्टरनेट, खासकर ओ.टी.टी. (इन्टरनेट आधारित सेवा) पर उपलब्ध विषय-वस्तु और उसके किशोरों पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव पर अपनी चिंता जाहिर की है, और इन पर त्वरित एवं प्रभावी नियंत्रण व नियमन का अनुरोध किया है। कमोवेश यह स्थिति पूरे देश में है एवं यह एक चिन्ता का कारण है। सरकार के स्तर पर इन्टरनेट सेवाओं के सामाजिक प्रभाव के मद्देनजर नियमन के प्रयास होते रहे हैं, पर सरकारों की अपनी सीमाएँ हैं। बात बात पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रश्न भी उठाया जाता रहा है। अतः इस दिशा में समाज द्वारा प्रयास जरूरी हो जाते हैं। समाज की सबसे छोटी इकाई, परिवार के स्तर पर सदस्यों द्वारा इन्टरनेट सेवाओं के प्रयोग पर निगाह रखने की जरूरत है। कहावत है-परिवार व्यक्ति के जीवन की प्रथम पाठशाला है। और जब किशोरों की बात हो, तो इसे बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ संबोधित करना होगा। इस स्तर पर माता-पिता एवं अभिभावकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।