एरोपोनिक तकनीक से अब हवा में होगी आलू की खेती

0
695
  1. एरोपोनिक तकनीक से अब हवा में होगी आलू की खेती

         भाष्कर द्विवेदी जागो ब्यूरो पौड़ी गढ़वाल

  • करनाल: शामगढ़ स्थित आलू प्रौद्योगिकी केंद्र में एरोपोनिक तकनीक से अच्छी गुणवत्ता का आलू उगाया जा रहा है. एरोपोनिक तकनीक में पौधे के टिशू को प्लास्टिक शीट के छेद में लगाया जाता है. जड़ एक बॉक्स में लटकी होती है. फिर मिट्टी की जगह सारी खुराक छिड़काव करके उसे दी जाती है. जब बॉक्स में लटकी जड़ में आलू लग जाते हैं. तो बॉक्स खोलकर आलू को अलग कर लिया जाता है.
  • एक यूनिट में एक वक्त में 20 हजार आलू के पौधे लगाए जा सकते हैं. उन 20 हजार आलू के पौधों से 8 से 10 लाख मिनी ट्यूबर्स या बीज तैयार किए जा सकते हैं. कृषि जगत के बागवानी विभाग में ये तकनीक अहम कदम मानी जा रही है. इससे किसान परंपरागत खेती के मुकाबले ज्यादा लाभ कमा सकते हैं.
  • #हवा_में_उगाए_जा_सकेंगे_आलू…

  • आलू प्रौद्योगिकी केंद्र के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर मनीष सिंगल ने बताया कि एरोपोनिक तकनीक से बिना जमीन और बिना मिट्टी के आलू उगाए जा सकेंगे. इस विधि से पैदावार भी पारंपरिक खेती के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होगी. करनाल के शामगढ़ गांव में स्थित आलू प्रौद्योगिकी केंद्र का इंटरनेशनल पोटेटो सेंटर के साथ एमओयू साइन हुआ है. इसके बाद भारत सरकार ने एरोपोनिक तकनीक के प्रोजेक्ट को अनुमति दे दी है.
  • एरोपोनिक तकनीक से अब हवा में होगी आलू की खेती,
  • एरोपोनिक तकनीक से ज्यादा होगा उत्पादन

आलू प्रौद्योगिकी केंद्र के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर मनीष सिंगल ने कहा कि आलू का बीज उत्पादन करने के लिए आमतौर पर हम ग्रीन हाउस तकनीक का इस्तेमाल करते थे, जिसमें पैदावार काफी कम आती थी. अब एरोपोनिक तकनीक से आलू का उत्पादन किया जाएगा, जिसमें बिना मिट्टी, बिना जमीन के आलू पैदा होंगे. इसमें एक पौधा 40 से 60 छोटे आलू देगा, जबकि पूर्व की ग्रीन हाउस वाली तकनीक से एक पौधे से पांच आलू ही निकलते थे, लेकिन एरोपोनिक तकनीक से तैयार हुए पौधे को खेत में बीज के तौर पर रोपित किया जा सकेगा. इस तकनीक से करीब 10 से 12 गुना पैदावार बढ़ जाएगी.

 

  • क्या है एरोपोनिक तकनीक?
  • इस तकनीक में मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती. बड़े-बड़े प्लास्टिक और थर्माकोल के बॉक्स में आलू के माइक्रोप्लांट डाले जाते हैं. बाद में थोड़े थोड़ समय में इनमें पोषक तत्व डाले जाते हैं, जिससे जिससे जड़ों का विकास होता है और कुछ समय बाद आलू के छोटे-छोटे ट्यूबर बनने शुरू हो जाते हैं. इस दौरान आलू के पौधों को सभी न्यूट्रिएंट दिए जाते हैं, जिससे पैदावार अच्छी होती है. इस तकनीक में जो भी जो भी न्यूट्रिएंट्स पौधों को दिए जाते हैं. वो मिट्टी के जरिए नहीं, बल्कि लटकती हुई जड़ों से दिए जाते हैं
  • आलू प्रौद्योगिकी केंद्र के सब्जेक्श स्पेशलिस्ट शार्दूल सिकंदर ने कहा कि करीब 2 करोड़ रुपये की लागत से इस केंद्र में एक सिस्टम को इंस्टॉल करवाया गया है. जिससे आलू के बीज के उत्पादन की क्षमता लगभग 3 से 4 गुना बढ़ गई है. उन्होंने बताया कि इस तकनीक से ना केवल हरियाणा के किसान बल्कि दूसरे राज्यों के किसानों को भी लाभ मिलेगा. इससे किसानों को उच्च श्रेणी व गुणवत्ता वाला बीज कम दामों पर प्राप्त होगा.
  • इन किस्मों का होता है उत्पादन जिसमें  कुफरी मोहनकुफरी पुखराजचिप्सोना वन की किस्म का उत्पादन होता है.
  • इसके अलावा 70 अन्य किस्मों के क्लोन है. इनके ऊपर शोध चल रहा है. शार्दुल शंकर ने बताया कि उनके केंद्र में दो अंतरराष्ट्रीय किस्में भी हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here