जनपद टिहरी में आगराखाल क्षेत्र के अदरक उत्पादकों ने माह अगस्त में ही बेच डाला एक करोड़ से भी अधिक का अदरक…
डा० राजेंद्र कुकसाल।
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टिहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगराखाल के अदरक उत्पादकों ने स्थानीय अदरक बीज से उत्पादन कर माह अगस्त में ही एक करोड़ से अधिक का अदरक बेच दिया। इस क्षेत्र के कृषक कई दशकों से अदरक की व्यवसायिक खेती करते आ रहे हैं।धमांदस्यू,दोणी व कुंजणी पट्टी के कसमोली, आगर, सल्डोगी, द्यूरी, कुखुई, चल्डगांव, कटकोड़, नौर, बसुई, पीडी, मठियाली, तिमली, मुंडाला, ससमण, बेराई, बांसकाटल, कोटर, रणाकोट, कुखेल, खनाना, जयकोट, जखोली, मैगा, लवा, तमियार गांवों के कृषक अदरक उत्पादन करते हैं।इस बर्ष माह अगस्त में ही इस क्षेत्र के कृषकौ द्वारा एक करोड़ से भी अधिक का अदरक देश की विभिन्न मण्डियौ में भेजा गया। इस वार यहां का उत्पादित अदरक मुख्य रूप से इलाहबाद व जौनपुर की मंडियों में गया।
*अदरक की मुख्य फसल माह नवम्बर में तैयार होती है इस समय जो अदरक बेचा गया वह बोया हुआ अदरक का पुराना बीज है जिसे कृषक अदरक का पौधा स्थापित होने के बाद माह अगस्त में पौधों से अलग कर बेच देते हैं।*
यहां के अधिकांश कृषक स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज से ही अदरक का उत्पादन करते हैं स्थानीय बीज की मांग अधिक रहती है किन्तु उतनी मात्रा में अदरक बीज उत्पादन नहीं हो पाता कृषकों का कहना है कि उद्यान विभाग द्वारा अदरक का बीज समय पर नहीं मिलता इस क्षेत्र में अदरक बीज की बुआई फरवरी में हो जाती है जब कि विभाग द्वारा अदरक बीज की आपूर्ति माह अप्रैल मई तक हो पाती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है साथ ही विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज बोने पर कई तरह की बीमारियों व कीट खड़ी फसल पर लगते हैं ।ग्रामीण कृषक सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष व पूर्व क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष श्री वीरेंद्र कंडारी(मोबाइल नंबर- 9412379969) का कहना है कि इस बार शुरुआत में अदरक की अच्छी बिक्री हुई है। अगस्त माह में करीब एक करोड़ तक के अदरक की विक्री हुई यह सब स्थानीय बीज व कृषकों की मेहनत का परिणाम है उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज समय पर नहीं मिलता साथ ही उसमें कई तरह की व्याधियां व कीट लगे होते हैं
*श्री कन्डारी जी ने उद्यान विभाग को स्थानीय अदरक बीज उत्पादन को बढ़ावा देने व योजनाओं में स्थानीय अदरक बीज किसानों को वितरित करने की सलाह दी है।* *
*अदरक बीज ग्राम विकसित कर अदरक
उत्पादकों की आय कई गुना बड़ाई जा सकती है।* उद्यान विभाग में केंद्र सरकार की कई योजनाएं- हार्टिकल्चर टैक्नौलाजी मिशन, परम्परागत कृषि योजना आदि हैं जिनके अन्तर्गत कृषकों को अदरक बीज उत्पादन हेतु सहायता दी जा सकती है।
*अदरक बीज उत्पादन करवा कर राज्य के कृषकौं को आर्थिक रूप से समृद्ध किया जा सकता है।*
पहाड़ी क्षेत्रों में नगदी फसल के रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है। विभागीय आकडों के अनुसार 4876 हैक्टियर में अदरक की कास्त की जाती है जिससे 47120 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है ।
अदरक बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं-
1-आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र केरल ।
2-कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा।
3-वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर नौणी सोलन हिमांचल प्रदेश हैं।
किन्तु उद्यान विभाग विगत कई वर्षों से पूर्वोत्तर राज्यों असम ,मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से सामान्य किस्म के अदरक को प्रमाणित / Truthful बीज के नाम पर रियोडी जिनेरियो किस्म बता कर 10-15 करौड रुपये का अदरक क्रय कर राज्य के कृषकों को बीज के नाम पर बांटता आ रहा है ।
अदरक बीज के आपूर्ति करने वाले (दलाल)इन राज्यों की मंडियों से 10-15 रुपये प्रति किलो की दर से क्रय करते हैं तथा अदरक बीज के नाम पर उद्यान विभाग 60-80 रुपये प्रति किलो की दर से इन दलालों के माध्यम से क्रय कर राज्य में कृषकों को योजना के अंतर्गत वितरित करता आ रहा है जिस पर 50 प्रतिशत का अनुदान विभाग द्वारा दिया जाता है।
अदरक बीज की खरीद पर कई वार सवाल उठे हैं तथा विवाद भी हुए हैं पूर्ववर्ती सरकार में भी अदरक बीज खरीद प्रकरण खूब चर्चाओं में रहा। समय समय पर जब अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते है तो विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर या बीज आपूर्ति कर्ता को ब्लेक लिस्ट कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है।
अदरक बीज आपूर्ति कर्ता / ठेकेदार( दलाल ) न तो अदरक बीज उत्पादक होते हैं और न ही किसी बीज आपूर्ति करने वाली कंपनी/ फर्म के अधिकृत विक्रेता। सम्मपरीक्षा /Audit से बचने के लिए इनके द्वारा फ्रुटफैड हल्दानी नैनीताल या अन्य सहकारिता समितियों के बिल का प्रयोग किया जाता है ये समितियां न तो अदरक उत्पादक होते हैं और न ही बीज आपूर्ति करने वाली संस्था। इस प्रकार अदरक बीज क्रय में /Seed act/उत्तराखंड पर्चेज रूल्स दोनों का उल्लघंन किया जाता है ।
अधिकतर कास्तकारों का कहना है कि स्थानीय उत्पादित अदरक बोने पर उपज ज्यादा अच्छी होती है विभाग द्वारा प्रमाणित बीज के नाम पर दिये गये अदरक बीज मै बीमारी अधिक लगती है साथ ही उपज भी कम होती है।
अदरक उत्पादित क्षेत्रों मै सहकारिता समितियाँ बनी हुई हैं जिनका मुख्य कार्य अदरक का विपणन करना है।ये समितियाँ कास्तकारौ से 15/20 रुपया प्रति किलो अदरक खरीद कर 30/40 रुपया प्रति किलो की दर से मंण्डियों मै बेचते हैं।
यदि जनपद स्तर पर स्थानीय समितियों से ही यहां के उत्पादित अदरक को विभाग उपचारित कर अदरक बीज के रूप में खरीद कर योजनाओं में कास्तकारौ को उपलब्ध कराये तो इससे दोहरा लाभ होगा एक तो कास्तकारौ को समय पर अच्छी गुणवत्ता का बीज उपलब्ध होगा साथ ही कास्तकारौ को अदरक के अच्छी कीमत भी मिलेगी ।
*अदरक उत्पादित क्षेत्रों में कुछ कास्तकार स्वयंम अदरक का बीज उत्पादित करते हैं टेहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगरा खाल , कस्मोली ,आगर आदि ग्राम सभाओं के अदरक उत्पादकों के साथ मेंने स्वंम वैठक की जिसमें हरियाली ग्रामीण कृषक श्रमिक सहकारी समिति के अध्यक्ष श्री हरीश चंद्र रमोला, ग्रामीण श्रमिक कृषक कल्याण सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष श्री कुंवर सिंह रावत व अन्य कृषकों ने भाग लिया स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज की मागं काफी रहती है* ।
अन्य उत्पादित क्षेत्रों देहरादून के चकरौता विकास नगर आदि क्षेत्रों में भी कास्तकार अदरक का बीज स्वयंम उत्पादित करते हैं।
उद्यान विभाग में अदरक बीज उत्पादन की केंद्र सरकार की कई योजनाएं – हार्टिकल्चर टैक्नौलाजी मिशन, परंपरागत कृषि विकास योजना आदि है जिनसे कृषकों सहायता पहुंचाई जा सकती है किन्तु उद्यान विभाग की रुचि अदरक बीज बाहर से ही खरीदने में ही है।
*उद्यान विभाग विगत 20 – 30 बर्षो से 10 – 15 करोड़ रुपए का अदरक उत्तर पूर्वी राज्यों से दलालों के माध्यम से मंगाता आ रहा है यह बीज कृषकों को नतो समय पर मिलता है और न ही इस बीज से अच्छी उपज प्राप्त होती है हिमांचल प्रदेश की तरह राज्य में कभी भी अदरक बीज उत्पादन के प्रयास नहीं किए गए।*
राज्य बनने पर आश जगी थी कि विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार कृषकों के हित में बनेंगी किन्तु ऐसा अभी तक तो होता नहीं दिखाई दे रहा।
योजनाओं में जबतक कृषकों के हित में सुधार नहीं किया जाता व क्रियावयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती कृषकों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी सोचना वेमानी है।
पूर्व लोकपाल (मनरेगा)
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समाचार पत्रों की नजर में अदरक बीज खरीद—
ऐसे तो लग जाएगा अदरक की खेती पर ब्रेक।
अमर उजाला
चंपावत Updated Tue, 17 May 2016 10:17 PM IST
सूखे की मार झेलने वाले किसानों के लिए अदरक की खेती एक उम्मीद थी और इसी उम्मीद पर उन्होंने अदरक लगाने के लिए खेत तैयार किए, लेकिन सरकारी बीज की कमी से ये भी नाउम्मीदी में बदल रही है। उन्हें जरूरत भर के लिए भी बीज नहीं मिल पा रहा है, मिल भी रहा है तो अधिक रकम खर्च करनी पड़ रही है।
पहले तो उद्यान विभाग समय पर बीज उपलब्ध नहीं करा पाया और जब दस दिन पहले बीज आए तो भी, तो कम मात्रा में मिले। डिमांड 290 क्विंटल की थी, लेकिन मिला महज 116 क्विंटल। इस कारण किसानों को जरूरत के हिसाब से बीज नहीं मिल सके। विभागीय बीज 30 रुपये और बाजार का बीज 55 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिल रहा है। विभागीय बीज की प्रमाणिकता भी अधिक होती है। पिछले साल जिले को 300 क्विंटल बीज 35.40 रुपये की दर से मिला था। अदरक की फसल जिले की प्रमुख नकदी फसल है। करीब 304 हेक्टेयर क्षेत्र में अदरक की बुवाई होती है। पिछले साल 2349 क्विंटल अदरक का उत्पादन हुआ।
बाजार में ढाई हजार रुपये महंगा है बीज किसानों का कहना है कि पर्याप्त मात्रा में बीज नहीं मिलने से दिक्कत आ रही है। किसानों ने उद्यान विभाग के बीज का इंतजार किया। मजबूर होकर बाजार से बीज खरीदा, मगर यह बीज विभागीय बीज से करीब 2500 रुपये क्विंटल अधिक कीमत का है। 15 अप्रैल से करीब एक माह तक बुवाई का उपयुक्त समय होता है।
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तो तोड़ लेंगे अदरक की खेती से नाता।
किसान ध्यान सिंह, गौरी दत्त, गिरधारी, हेतराम आदि का कहना है कि अदरक की फसल इलाके की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाती थी। घर-गृहस्थी का खर्चा इससे निकल जाता था। सूखे के बाद अब वक्त पर बीज नहीं मिलने से उनकी उम्मीदों पर पानी फिरा है। अगर हालात ऐसे ही रहे, तो वे अदरक की खेती से नाता तोड़ने को मजबूर होंगे।
चंपावत जिले के लिए 290 क्विंटल अदरक के बीज की मांग की गई थी, मगर इसके सापेक्ष जिले में मात्र 40 प्रतिशत बीज ही मिल सके हैं। इस बीज को पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर बांटा गया, लेकिन कम बीज के चलते एक किसान को अधिकतम 20 किलोग्राम बीज ही दिया गया। –
हरीश तिवारी, जिला उद्यान अधिकारी, चंपावत।
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जागरण
आठ साल में सिर्फ दो बार ही पूरा मिला अदरक
Publish Date:Mon, 21 Jan 2019 08:08
देहरादून
मंशा किसानों को वक्त पर खाद-बीज मुहैया कराकर उत्पादन में बढ़ोतरी की और सिस्टम का हाल यह कि वह वक्त पर बीज ही मुहैया नहीं करा पा रहा। उत्तराखंड में किसानों को अदरक का शोधित बीज मुहैया कराने के मामले में तस्वीर कुछ ऐसी ही है। 2010 से शुरू की गई इस पहल के दरम्यान अब तक केवल दो बार ही राज्य में अदरक बीज की पूरी आपूर्ति हो पाई। उस पर हैरानी की बात ये कि इस बेपरवाही के लिए किसी को जिम्मेदार भी नहीं ठहराया गया। ऐसे में अदरक को आर्थिकी से कैसे जोड़ा जाएगा, स्वत: ही अंदाज लगाया जा सकता है।
राज्य में 4822 हेक्टेयर क्षेत्र में अदरक की खेती होती है, जिसमें पर्वतीय जिले मुख्य हैं। उत्तराखंड बनने के बाद प्रदेश में उद्यान विभाग की ओर से अदरक का बीज पूर्वाेत्तर समेत अन्य राज्यों से मंगाकर किसानों को दिया जाता था। उत्पादन बढ़ाने के मद्देनजर 2010 में किसानों को अदरक का शोधित बीज मुहैया कराने की पहल की गई। तब उत्तर प्रदेश फल एवं भेषज सहकारी संघ के माध्यम से अदरक बीज की पांच हजार कुंतल और हल्दी के 2700 कुंतल बीज की आपूर्ति की गई।
सूत्रों के अनुसार इसके अगले वर्ष से टेंडर प्रक्रिया के जरिये फर्माें को आमंत्रित कर इनके माध्यम से शोधित बीज देने का निर्णय लिया गया, लेकिन 2016 तक कभी भी सप्लाई पूरी नहीं की गई। हर बार ही बीज की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे। यही नहीं, कई मर्तबा संबंधित फर्म शर्तें पूरी नहीं कर पाई। बाद में इनमें कुछ ढील दी गई और 2017 में जिस फर्म के नाम यह टेंडर छूटा, उसने अदरक व हल्दी की पूरी आपूर्ति की। इससे उम्मीद बंधी कि व्यवस्था सुधरेगी, लेकिन 2018 में 2700 कुंतल के सापेक्ष 1600 कुंतल बीज की आपूर्ति हो पाई।
हालांकि, उद्यान महकमे ने इस वर्ष के लिए अभी से प्रयास शुरू किए। चार जनवरी को इसके लिए टेंडर आमंत्रित किए गए, मगर इसमें केवल दो फर्में ही आई। तीन से अधिक फर्म के नियम के चलते इसे निरस्त करना पड़ा। 16 जनवरी को दोबारा टेंडर आमंत्रित किए गए, मगर इसमें एक ही फर्म आई। नतीजतन इसे भी निरस्त कर दिया गया।
उधर, उद्यान निदेशक आरसी श्रीवास्तव ने माना कि पूर्व के वर्षाें में कुछ कठिनाइयां थीं, मगर अब प्रोक्योरमेंट नियमावली के तहत ही टेंडर आमंत्रित कर उच्च गुणवत्ता का अदरक व हल्दी का शोधित बीज मुहैया कराने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि गत वर्ष बाद में डिमांड कम होने के कारण आपूर्ति कम हुई। इस वर्ष विभाग ने जनवरी से ही टेंडर प्रक्रिया शुरू की है, ताकि वक्त पर किसानों को बीज मिल सके। तीसरी बार जल्द ही टेंडर आमंत्रित किए जाएंगे। कोशिश है कि फरवरी मध्य से किसानों को बीज मिलने लगें।
अप्रैल तक होती है बुआई
राज्य के पर्वतीय जिलों में ही मुख्य रूप से अदरक और हल्दी की खेती होती है। इसकी बुआई का समय फरवरी मध्य से अपै्रल तक होता है।
नहीं मिल रहा ‘री-डिजिनेरियो’
अदरक की ‘री-डिजिनेरियो’ प्रजाति को राज्य के लिए बेहतर मानते हुए विभाग इसे प्रोत्साहित कर रहा है। इस पर तुर्रा ये कि पर्याप्त आपूर्ति के लिए इसका बीज ही नहीं मिल पा रहा।
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किसानों को नहीं मिला बुआई के लिए हल्दी और अदरक
हिन्दुस्तान टीम,रुद्रप्रयाग
Updated: Sat, 05 May 2018 02:47
बीते दो महीने से खेतों में अदरक और हल्दी लगाने के इच्छुक किसानों को अब तक बीज नहीं दिया गया है, जिससे वह खेती तैयार कर सके। किसानों ने कहा कि दो महीने में भी उन्हें हल्दी और अदरक की रोपित की जाने वाली जड़ नहीं दी गई, जिससे उनके सामने दिक्कतें आ गई हैं। जबकि उन्होंने अपने खेत भी तैयार किए हैं।प्रगतिशील किसान विनोद डिमरी ने बताया कि पूर्व में प्रशासन और कृषि एवं उद्यान विभाग ने किसानों को अदरक और हल्दी की जड़ देने का आश्वासन दिलाया। इस फसल के लिए मार्च और अप्रैल सबसे अच्छा महीना है, किंतु मई शुरू होने के बाद भी अब तक किसानों को हल्दी और अदरक बुआई के लिए नहीं मिल पाया है। उन्होंने कहा कि अकेले रुद्रप्रयाग में ही 20 कुंतल से अधिक डिमांड है। इधर, अन्य इच्छुक किसानों ने भी कहा कि उन्हें बुआई के लिए अदरक और हल्दी नहीं दी गई है जबकि उन्होंने अपने खेत इसके लिए खाली रखे हैं। डीएम मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि यदि किसानों को जरूरत पर बीज, दवा आदि उपलब्ध नहीं कराए गए तो संबंधित विभाग के खिलाफ कार्यवाही की जायेगी।
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