उत्तराखण्ड सरकार की सेब काश्तकारों के प्रति उदासीनता व गलत नीतियों के साथ कोविड संकटकाल में घटती डिमांड ने काश्तकारों की तोड़ी कमर ..

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उत्तराखण्ड सरकार की सेब काश्तकारों के प्रति उदासीनता व गलत नीतियों के साथ कोविड संकटकाल में घटती डिमांड ने काश्तकारों की तोड़ी कमर ..

भाष्कर द्विवेदी जागो ब्यूरो रिपोर्ट:

उत्तराखण्ड राज्य में सेब काश्तकारों के हितों की अनदेखी और उनके उत्पादन किये सेबों के प्रति सरकारों की नीतियों का शिकार हो रहे,राज्य के सभी सेब काश्तकारों पर मौसम और कोरोना की मार के साथ सरकार की नीतियों और अव्यवस्थाओं की भी जबरदस्त मार पड़ रही है,आलम ये है कि सेब काश्तकारों को स्वयं ही सेब तुड़ान से लेकर बाजार और व्यापारी स्वयं ढूंढने पड़ रहे हैं,इस बार सेब के उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं हुई है, और सरकार के पास ऐसी कोई नीति नहीं है कि अगर काश्तकार का सेब अगर खराब हो रहा है या किसी कारणवश मंडी नहीं जा पा रहा है या उसे सेब के अच्छे रेट मंडी में नहीं मिल पा रहे हैं,ऐसे में सेब काश्तकार को चौतरफ़ा नुकसान झेल रहा है,झेलना पड़ता है, सरकार बिना काश्तकार से राय-मशविरा किये काश्तकारों के हित की बात भी नहीं कर सकती है,क्योंकि नीति तो तब बनती है जब सेब काश्तकारों को उनकी भलाई की नीति बनाने की कमेटी का सदस्य बनाए जाय या सरकार काश्तकार के द्वारा की गयी माँगों पर अमल कर ले, लेकिन दुर्भाग्यवश उत्तराखण्ड राज्य में अब तक एसी रूमों में बैठकर ही काश्तकारों की भलाई की नीतियां बनाई जाती है,जो केवल सरकारी अंकगणित को ठिकाने लगाने हेतु होती हैं,यदि वर्तमान सरकार गंभीरता से काम करे और अपने नीति निर्माताओं को जमीनी हकीकत और काश्तकारों की बीच भेजकर नीतियों का निर्माण करे और देखे कि वास्तव में काश्तकार को क्या दिक्कतें हैं,तो काश्तकारों का कुछ भला हो! सेब काश्तकारों की तो बहुत सारी समस्याएं हैं और उन समस्याओं का हल तभी हो सकता है,जँहा सेब फल पट्टियां हैं वहां के काश्तकारों का नीति बनाने वाली कमेंटी का सदस्य होना अति आवश्यक है, सरकार सेब काश्तकारों का समर्थन मूल्य निर्धारित कर दे, क्योंकि मौसम की मार झेलने से सेब कभी बिल्कुल भी नहीं होता है,जिससे किसान के हाथ काम करने से उठ जाते हैं और अगर उसको कहीं से कुछ ना कुछ मिलता रहे तो वह निराश नहीं होगा,उसको लगेगा कि नहीं मुझे इस बार चाय,खाद,पानी का ही पैसा मिला,लेकिन अगली बार तो फल का मिलेगा!पिछले कई सालों से क्लाइमेट चेंज होने के कारण से सेब के उत्पादन पर बहुत प्रभाव पड़ा है, 2013 में केदारनाथ आपदा के समय सेब के बड़े-बड़े ट्रक लदकर मंडियों के लिये गए और रास्ते में ही अटके रहे,जिससे पूरा सेब बर्बाद हो गया और काश्तकारों को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा,वर्तमान में कोरोना लाकडाउन से पहले मौसम की मार के बाद स्थानीय सेब की घटती डिमांड ने काश्तकारों की कमर तोड़ दी है,पहले ही बेमौसम बारिश से चालीस फीसदी तक बर्बाद हो चुकी सेब की फसल को मंडियों में उचित भाव भी नहीं मिल पा रहा है,सीमांत जनपद उत्तरकाशी में सेब काश्तकारों के लिए माह अप्रैल मुसीबत भरा रहा है, बेमौसमी बारिश से उत्तरकाशी के भटवाड़ी से लेकर आराकोट- बंगाड़ तक भारी ओलावृष्टि हुई और इस ओलावृष्टि से सबसे अधिक नुकसान सेब,नाशपाती, खुमानी,आडू,चुल्लु की बागवानी करने वाले काश्तकारों को हुआ है।

कोरोना संक्रमण के बीच ओलावृष्टि की मार झेलने वाले काश्तकार उद्यान विभाग और प्रशासन से क्षति का आकलन कर मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं, जिससे काश्तकारों को दवा और खाद पर खर्च हुई धनराशि तो मिल सके,नौगाँव विकास खंड के भाटिया,तुनाल्का,धारी, कलोगी, हिमरोल,कफनोल, ठोलियूका,गैर,दारसों में भी भारी ओलावृष्टि हुई,आराकोट से लेकर मोंडा बलावट तक के सेब के बगीचों को भारी नुकसान पहुंचा है,यहां किसानों की फसल बुरी तरह से बर्बाद हो चुकी है,लेकिन उत्तराखण्ड सरकार की तरफ से इस मामले में कोई पहल नहीं हुई और दूसरी तरफ हिमाचल सरकार ने तो इस बार सिर्फ सेब बगवानों को कहा कि जहां आपका सेब से भरा ट्रक खाली हो उसी जगह पर ही आपको उसका पूरा पैसा मिल जायेगा, शायद यही वजह है कि हमारा उत्तराखण्ड का जो अच्छा सेब है,वह हिमांचल के नाम से बिकता है,जो हमारी सरकारों की उदासीनता का परिचायक है, “जागो उत्तराखंड”मुख्यमन्त्री उत्तराखण्ड सरकार से निवेदन करता है कि गंभीर विषय का संज्ञान लेते हुए काश्तकारों को उचित सहायता अविलंब उपलब्ध करवाये।

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