उत्तराखण्ड के माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री जगमोहन रावत की नियुक्ति पर बड़े सवाल,10 साल से दबाई जा रही है जाँच…!!!

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उत्तराखण्ड के माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री जगमोहन रावत की नियुक्ति पर बड़े सवाल,10 साल से दबाई जा रही है जाँच…!!!

जागो ब्यूरो एक्सक्लूसिव:

उत्तराखंड के माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री की नियुक्ति पर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं,माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री जगमोहन रावत पौड़ी जनपद के अशासकीय विद्यालय,जनता इंटर कॉलेज ढामकेश्वर में सहायक अध्यापक विज्ञान के पद पर तैनात हैं।दरअसल जिला संयोजक यूथ अगेंस्ट करप्शन,विजय शाह द्वारा पौड़ी के शिक्षा विभाग को वर्ष 2012 में शिकायत की गयी थी,कि जगमोहन रावत की इन्टर कॉलेज ढामकेश्वर में वर्ष 1991 में तदर्थ नियुक्ति के समय वे सहायक अध्यापक विज्ञान हेतु विज्ञापित अनिवार्य अहर्ता बीएड की योग्यता धारण नहीं करते थे और उनके द्वारा वर्ष 1991-93 के दौरान विद्यालय में तदर्थ सेवा में रहते हुये गढ़वाल विश्वविद्यालय के पौड़ी परिसर से संस्थागत छात्र के रूप में एमएससी वनस्पति विज्ञान की डिग्री भी हासिल कर ली गयी है!बाद में उन्होंने नियमितीकरण एवं वेतन आहरण हेतु माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में योजित एक रिट में माननीय न्यायालय को भी अंधकार में रखते हुये न केवल नियमिती करण का लाभ ले लिया,वरन उक्त अवधि का वेतन भी आहरण कर लिया ! उक्त शिकायत पर वर्ष 2012 में तत्कालीन खण्ड शिक्षा अधिकारी खिर्सू ने जाँच की और जगमोहन रावत की प्रथम नियुक्ति और तदर्थ नौकरी करते हुये संस्थागत छात्र के रूप में एमएससी करने से सम्बंधित कई अनियमितताओं को जाँच में छुपा कर जाँच को ठंडे बस्ते में डलवा दिया।इस फर्जीवाड़े की जानकारी होने पर “जागो उत्तराखण्ड” ने भी अपनी सामाजिक व नैतिक जिम्मेदारी समझते हुये,सूचना के अधिकार में प्राप्त उक्त जाँच पत्रावली की गहनता से पड़ताल की,जिसमें साफ़ दृष्टिगोचर हो रही कई अनियमि तताएं और धोखाधड़ी उजागर हो रही हैं!सबसे पहले हमने जगमोहन रावत की प्रथम नियुक्ति के समय अनिवार्य बीएड की योग्यता न होने की पड़ताल की,जिसमें निकल कर आया है कि जगमोहन रावत ने सहायक अध्यापक विज्ञान के जिस पद पर नियुक्ति पायी है,उसका विज्ञापन प्रकाशन 12 अगस्त 1991 को हुआ था,विज्ञापन के अनुसार इस पद पर नियुक्ति हेतु आवेदन करने हेतु 15 दिन का समय निर्धारित था,जोकि 26 अगस्त 1991 को समाप्त होना था,जगमोहन रावत के पास उस समय बीएड की डिग्री नहीं थी,इस आधार पर वह 26 अगस्त तक उक्त पद हेतु आवेदन करने की अहर्ता ही नहीं रखते थे और उनको साक्षात्कार हेतु नियमानुसार बुलाया ही नहीं जाना चाहिये था,इस कमी को पूरा करने के लिये गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएड की प्रोविजिनल मार्कशीट मंगाने का खेल रचा गया,विश्व विद्यालय द्वारा निर्गत इस कथित प्रोविजिनल बीएड की मार्कशीट को एक बन्द लिफ़ाफ़े में,जिसके ऊपर न तो पत्रांक संख्या और न तिथि लिखी है,28 अगस्त को विद्यालय में प्राप्त करवाया गया,सूचना के अधिकार में प्राप्त पत्रावली में,इस लिफाफे की छायाप्रति तो संलग्न है,लेकिन जिस कथित बीएड की अंकतालिका के आधार पर 31 अगस्त 1991 को जगमोहन रावत का चयन किया जाता है,वह ग़ायब है!स्पष्ठ है कि एक तो नियुक्ति हेतु आवेदन प्राप्ति की कट ऑफ डेट 26 अगस्त तक विद्यालय को जगमोहन रावत की बीएड की मार्कशीट प्राप्त ही नहीं हुयी थी और ऐसे में जगमोहन रावत का आवेदन ही निरस्त हो जाना चाहिये था और फ़िर उनको 31 अगस्त को साक्षात्कार हेतु बुलाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है।कुल मिलाकर ये शीशे की तरह बिल्कुल साफ़ दृष्टिगोचर तथ्य है,कि जिस “कथित लिफ़ाफ़े” को बीएड की प्रोविजनल मार्कशीट के रूप में दिखलाया जा रहा है और जिसके आधार पर 31 अगस्त को सहायक अध्यापक विज्ञान के पद पर चयन हेतु चयन समिति द्वारा जगमोहन रावत का साक्षात्कार लिया गया वो पूरी तरह संदेह के घेरे में है और जगमोहन रावत के सहायक अध्यापक विज्ञान के पद पर चयन पर बड़े सवाल खड़े तो करता ही है,साथ ही नियुक्ति हेतु शिक्षा विभाग में निर्धारित नियम कानूनों और प्रक्रिया का भी असंवैधानिक तरीके से धज्जियां उड़ाते हुये साफ़ नज़र आता है।जगमोहन रावत के ख़िलाफ़ दूसरा मामला भी गम्भीर आपराधिक प्रकृति का है,जगमोहन रावत द्वारा इसी विद्यालय में कार्यरत रहते हुए वर्ष 1991-93 के दौरान गढ़वाल विश्वविद्यालय के पौड़ी परिसर से संस्थागत छात्र के रूप में वनस्पति विज्ञान जैसे प्रायोगिक विषय से,जिसमें नियमित रूप से प्रैक्टिकल और थ्योरी कक्षाओं में उपस्थित रहना अनिवार्य होता है,एमएससी भी कर लिया जाता है,इस हेतु जगमोहन रावत नियमतः विद्यालय की प्रबन्ध समिति का अनुमोदन भी प्राप्त नहीं करते!साथ ही वे अपने द्वारा किये गये फर्जीवाड़े की शिक़ायत की जाँच में अपना हास्यास्पद जबाब लिखते हुये बताते हैं कि “वे निजि वाहन से अपने विद्यालय ढामकेश्वर में कक्षाएं लेने के साथ-साथ,यँहा से लगभग 25 किलोमीटर दूर एमएससी वनस्पति विज्ञान की कक्षाओं में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने गढ़वाल विश्वविद्यालय के पौड़ी परिसर का भी हर रोज चक्कर लगा आते थे”!बाद में अपनी तदर्थ नियुक्ति के नियमितीकरण और वेतन आहरण हेतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय में योजित वाद में भी जगमोहन रावत ने माननीय उच्च न्यायालय से भी यह तथ्य छुपाते हुये,न केवल अपनी तदर्थ नियुक्ति को शिक्षा विभाग से नियमित करवा लिया,साथ ही सम्पूर्ण अवधि का वेतन प्राप्त करने हेतु निर्देश भी प्राप्त कर लिये!जबकि नियमतः जगमोहन रावत द्वारा एमएससी किये जाने की अवधि को अवैतनिक/सर्विस ब्रेक माना जाना था और ऐसी स्थिति में उनको नियमितीकरण का लाभ भी नहीं मिलना चाहिये था,लेकिन ये उत्तराखण्ड का शिक्षा विभाग है!जँहा योग्य बेरोजगारों के लिये नौकरी नहीं है,तो इसी विभाग में ऐसे हजारों हैं जो फर्जीवाड़ा कर नियुक्ति पाकर,शिक्षा विभाग से मोटी तनख्वाह लेकर ज़िन्दगी के ऐश लेने के साथ-साथ शिक्षा विभाग को राजनीति का अखाड़ा बनाकर बच्चों का भविष्य भी बर्बाद कर रहे हैं।जरूरी है कि शिक्षा विभाग जगमोहन रावत प्रकरण में भी प्रदेश भर में एसआईटी जाँच में पकड़ में आये सैकड़ों फर्जी नियुक्ति पाये शिक्षकों की भान्ति जाँच करवाकर,इस तरह के फर्जीवाड़े करने वाले शिक्षकों के साथ-साथ,जाँच के नाम पर बड़े भ्रष्टाचार के ऐसे प्रकरणों को ठंडे बस्ते में डालने वाले अधिकारियों पर भी एफआईआर दर्ज कर दंडित करे,जिससे नौकरी के लिये दर-दर भटक रहे प्रशिक्षित बेरोजगारों के हकों पर कब्ज़ा जमाये बैठे फर्जी शिक्षकों को शिक्षा विभाग से बाहर कर,योग्य युवाओं के लिये रोज़गार के द्वार खोलकर राज्य के भविष्य को एक बेहतर दिशा दी जा सके।बहरहाल “जागो उत्तराखण्ड”द्वारा पौड़ी के मुख्य शिक्षा अधिकारी डॉ आनन्द भारद्वाज से इस प्रकरण में विभागीय पक्ष जानने पर उन्होंने बताया है कि, यह पुराना प्रकरण है,उन्हें इसकी जानकारी नहीं है,अगर उक्त सम्बन्ध में उन्हें कोई शिकायत प्राप्त होती है तो वे नियमानुसार कार्यवाही करेंगे।

 

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