आज के ही दिन 14 सितम्बर, 1951 को सतपुली ञासदी की पुण्यतिथि पर शहीद 30 ड्राइबर-कंडक्टर भाईयों को नमन व श्रद्धांजलि..
साभार जयकृत बिष्ट जी
गढ़माता के ये वीर पुत्र 14 सितम्बर, 1951 को अपनी गाड़ियों सहित सतपुली नयार नदी की प्रचन्ड बाढ़ में सदैव के लिए विलीन हो गये थे। सड़क मार्ग से सन् 1944 में जुड़ने के 7 साल बाद ही 14 सितम्बर 1951 को पूर्वी नयार में आयी भयंकर बाढ़ में संपूर्ण सतपुली बाजार, 30 लोग और 31 बसें कालग्रसित हो गए थे। इस भीषण बाढ़ से हुयी ञासदी की भयानकता को बताता यह गढ़वाली लोकगीत हर किसी को भावविभोर कर देता है।
द्वी हजार आठ भादौं का मास।
सतपूली मोटर बौंगीन खास।
से जावा भै बन्दो अब रात ह्वैगी।
रुण-झुण, रुण-झुण बारसि लैगे।
काल की सी डोर निदंरा यैगे।
घनघोर निंदरा जूब सबू येगी।
मोटर का छत पांणी भोरे गे।
भादौं का मैना रुण-झुण पांणी।
हे पापी नयार क्या बात ठांणी।
सबेरी उठीकी जब औंदा भैर
बौगीकि औंदान सांदण खैर।
डरैबर कलैंडर सबी कठा होवा।
अपणी गाड्यो मा पत्थर मोरा।
गरी ह्वै जाली गाड़ी रुकि जालो पाणीं।
हे पापी नयार क्या बात ठांणी।
अब तोड़ा जंदेऊ कफङ्यों खोला।
हे राम, हे राम! हे शिव बोला।
डरैबर कलैंडर सबी भेंटी जौला।
ब्याखन बिटीन येखूली रौला।
भग्यानू की मोटर छाला लैगी।
अभाग्यों की मोटर डूबण लैगी।
शिवानन्दी को छयो गोबरदन दास।
द्वी हजार रुप्या छया तैका पास।
गाड़ी बगदी जब तैन देखी।
रुप्यों की गड़ोली नयार फेंकी।
हे पापी नयार कमायों त्वैकू।
मंगसीर का मैना ब्यो छऊ मैकू।
सतपूली का लाला तुम घौर जैल्या।
मेरी हालत मेरी माँमा बोलल्या।
मेरी माँ मा बोल्यान तू माजी मेरी।
तो रयो माँ जो गोदी को तेरी।
मेरी माँ को बोल्यान नी रयी सास।
सतपूली मोटर बौगोन खास।