सरकारी सिस्टम के लचरपन के सब हैं शिकार…पत्रकार श्रीनिवास का भी अधूरा लटका निवास..

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सरकारी सिस्टम के लचरपन के सब हैं शिकार,
पत्रकार श्रीनिवास का भी अधूरा लटका निवास..

जागो ब्यूरो रिपोर्ट:

प्रदेश के जनहित के मुद्दों को प्रभावी ढंग से अपने प्रतिश्ठित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल पर उठाकर कई लोगों को न्याय दिलवाने वाले प्रखर पत्रकार श्रीनिवास पन्त भी सरकारी मशीनरी के लचरपन का शिकार हो गये हैं, दरअसल श्रीनिवास ने मुख्यमंत्री की रिवर्स पलायन योजना के अंतर्गत, मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र की सोच से प्रभावित होकर चमोली जनपद की पोखरी तहसील के अंतर्गत अपने पैतृक गाँव में मकान बनाने का काम शुरू किया, लेकिन इस बीच पिछले दिनों आयी भारी बारिश के कारण,गाँव की पेयजल लाइन छतिग्रस्त हो गयी,आपदा में गाँव की पेयजल सप्लाई लाइन बहने के कारण गाँव में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है,जिसके कारण गाँव वालों को दूर दराज़ से जलश्रोतों से पेयजल अपने कंधों पर उठाकर लाना पड़ रहा है,ऐसे में श्रीनिवास के मकान का काम भी पानी की व्यवस्था न होने से अधूरा लटक गया है,पिछले एक माह से जल संस्थान के अधिशाषी अभियंता से लेकर,चमोली जनपद की पोखरी तहसील के एसडीएम और विधायक बद्रीनाथ महेंद्र भट्ट समेत सभी के संज्ञान में समस्या लाने के बावजूद समस्या का समाधान नहीं हुआ,अंततः थक हार कर पिछले महीने की तीस तारीख़ को श्रीनिवास ने मुख्यमंन्त्री कार्यालय में समस्या की लिखित शिकायत भी दे दी,जिसके बाद मुख्यमंन्त्री के ओएसडी अभय रावत ने पोखरी के एसडीएम से जल्द समस्या का समाधान करने को फ़ोन किया ,एसडीएम से आश्वासन भी मिला ,लेकिन आज एक माह बाद भी गाँव के नलों में पानी नहीं टपक रहा,श्रीनिवास के मकान का सत्तर फीसदी काम पूरा हो चुका है और अब मकान पर प्लास्टर किया जाना है,प्लास्टर के लिये लाये गये सीमेन्ट के बैग अब सेट होने को हैं,लेकिन मकान बिना पानी के पूरा किया जाये तो कैसे?

श्रीनिवास कहते हैं कि प्रदेश में जब एक पत्रकार की नहीं सुनी जा रही है,तो आम जनता की क्या सुनी जाएगी? श्रीनिवास ने बैंक से लोन लेकर तकरीबन ₹ सात लाख मकान पर लगा दिये हैं,लेकिन सरकारी सिस्टम के लचरपन की वज़ह से फिलहाल मकान का काम पूरा होता नहीं दिखता,सरकारी सिस्टम के आगे श्रीनिवास भी हिम्मत हार चुके हैं ,उन्होंने सोचा था कि मुख्यमंन्त्री की रिवर्स पलायन योजना के तहत पैतृक गाँव में मकान होगा तो बार- त्यौहार पर गांव जाते रहेंगे,गाँव में मौजूद अपनी जड़ों को हरा भरा रखेंगे,लेकिन अफसोस कि सरकारी सिस्टम के आगे एक हिम्मती पत्रकार भी हिम्मत हार चुका है,ऐसे में अगर समय रहते सरकारी सिस्टम के इस लकुये का वाज़िब इलाज़ न किया गया तो शायद ही कोई व्यक्ति रिवर्स पलायन योजना के तहत गाँव में मकान बनाना चाहेगा!

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