खोह नदी का अस्तित्व समाप्त करने पर तुले कोटद्वार नगर निगम और दुगड्डा पालिका..
जागो ब्यूरो रिपोर्ट:
रामगंगा की सहायक मानी जाने वाली खोह नदी सरकारी सिस्टम की लापरवाही के चलते मैली हो चली है। स्पर्श गंगा अभियान को ताक में रख जहां खोह नदी दुगड्डा नगर पालिका व कोटद्वार नगर निगम के कूड़े का बोझ झेल रही है।वहीं,नदी तट पर आये दिन जमने वाली महफिलों ने भी इस नदी को प्रदूषित कर दिया है। बताना बेहद जरूरी है कि दुगड्डा व कोटद्वार के मध्य करीब 13 किलोमीटर के हिस्से में नदी आरक्षित वन क्षेत्र से गुजरती है और लैंसडौन वन प्रभाग के जंगलों में मौजूद हाथी,बाघ सहित अन्य वन्यजीव इस नदी के जल से अपनी प्यास बुझाते हैं।
दुगड्डा में सिलगाड व लंगूरगाड नदियों के मिलन के बाद आकार लेने वाली खोह नदी दुगड्डा से कोटद्वार की ओर बहते हुए करीब 25 किमी.का सफर तय कर सनेह क्षेत्र में कोल्हू नदी से मिलती है व कोल्हू के साथ सफर करते हुए रामगंगा में जाकर समा जाती है। पौराणिक रूप से भी इस नदी का महत्व है। लेकिन, सिस्टम का हाल देखिए कि खोह नदी दो-दो ट्रेंचिंग ग्राउंड के बोझ तले गायब होती नजर आ रही है। दुगड्डा नगर पालिका के साथ ही कोटद्वार नगर निगम ने इस नदी के तट पर अस्थायी ट्रेंचिंग ग्राउंड के नाम पर कूड़े के ढेर एकत्र कर दिए हैं।
खोह नदी का महत्व…
वर्तमान में भले ही खोह नदी अपने अस्तित्व से जूझ रही हो। लेकिन, इस नदी का महत्व आदिकाल से है। मान्यता है कि तपस्या भंग होने के बाद मेनका व विश्वामित्र के मिलन से एक कन्या का जन्म हुआ। मेनका इस कन्या को खोह नदी के तट पर छोड़ स्वर्ग वापस लौट गई। नदी तट पर शुक पक्षियों ने इस बच्ची की रक्षा की। इस बीच विचरण करते हुए नदी तट पर पहुंचे महर्षि कण्व इस कन्या को अपने आश्रम में ले आए व इन्होंने कन्या का नाम शकुंतला रखा। खोह नदी से कुछ दूर मालन नदी के तट पर शकुंतला व दुष्यंत का मेल हुआ व यहीं शकुंतला ने भरत को जन्म दिया। भरत बाद में चक्रवर्ती सम्राट बने।
कोटद्वार के लिए खोह का महत्व..
एक समय था जब कोटद्वार नगर के साथ ही सनेह क्षेत्र की जनता खोह नदी के स्वच्छ व निर्मल जल से अपनी प्यास बुझाती थी। वक्त बीता और बदलते वक्त के साथ आई नलकूपों की बाढ़ ने खोह नदी से आमजन की निर्भरता समाप्त कर दी। नतीजा, जिस खोह नदी को संरक्षित किया जाना था, वह दम तोड़ती नजर आ रही है। हालांकि, करीब दो वर्ष पूर्व खोह नदी को सदानीरा रखने के लिए जिला प्रशासन ने खोह नदी के साथ ही उसकी सहायक लंगूरगाड व सिलगाड नदियों में चैक डैम बनाने की योजना तैयार की। इसके लिए सिंचाई विभाग व वन विभाग को प्रस्ताव बनाने को कहा गया। लेकिन,नदी को संरक्षित करने संबंधी प्रस्ताव फाइलों में दफन होकर रह गये।
“जल पहाड़ का जीवन है। जल के बिना पहाड़ की परिकल्पना भी बेमानी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे सामने नदी का अस्तित्व खत्म हो रहा है और हम चुपचाप बैठे हुए हैं। खोह को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिये”
: सचिदानंद भारती, प्रणेता,पाणी राखो आंदोलन