आउटर सिराज आनी कुंईर का वो शिव धाम जहां महाकाल के सम्मान में होता है सदियों पुरानी बूढ़ी दिवाली का निर्वहन…
राज शर्मा,आनी,कुल्लू ,हिमाचल प्रदेश:
भारत वर्ष में हिमाचल व उत्तराखंड ऐसे दो पहाडी राज्य हैं जहां पर वर्ष भर कोई न कोई पारम्परिक पर्व मनाए जाते रहे हैं । चाहे वो परम्पराए कितनी भी पुरातन काल की क्यों न रही हो , इन सभी प्रकार की परंपराओं का वहन आज भी बडे हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है ।भारतवर्ष में दीपावली महापर्व को कार्तिक कृष्ण पक्ष मे मनाया जाता है । वहीं देव भूमि हिमाचल में देवताओ के सम्मान में पारम्परिक बूढ़ी दिवाली मनाई जाती हैं।
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के तहत आनी उपमण्डल के कुंईर गांव में महाकाल शिव कुंईरी महादेव के सम्मान मे सदियों पुरानी देव संस्कृति की पंरम्परा का वहन आज भी होता है।
महाकाल शिव की पुरातन स्थली कुंईर में देवाधिदेव महादेव के सम्मान में आयोजित दो दिवसीय बूढ़ी दिवाली का यह विशेष पर्व पुरातन काल की परम्परा रही है । बूढ़ी दिवाली की प्रथम रात्रि महादेव के रुप को गुप्त आवरणीत विग्रह में पूजा की जाती हैं । रात्रि के समय मन्दिर के बाहर ढोल ,नगारों की थाप के चलते महादेव के मन्दिर परिसर मे रिक्त भू भाग पर प्रचण्ड अग्नि को प्रज्वलित किया जाता हैं और सभी लोग प्रज्वलित अग्नि के सामने पारम्परिक लोकनृत्य, और काव गाए जाते हैं । तत्पश्चात क्षेत्रीय लोग बडे उच्च स्वर के साथ प्रज्वलित अग्नि के पास प्राचीन नृत्य करते हैं । इस तरह यह लोकगीत भक्ति सस्वर भजन मन्दिर में पूरी रात्रि चलता रहता है ।इस पर्व के दुसरे दिन पारम्परिक संस्कृति की झलकियां देखने को मिलती हैं । इसमे मूंज घास से एक बहुत लम्बा रस्सा बनाया जाता है । जिसे पौराणिक काल के समुद्र मंथन के वासुकी नाग के लिय मानते हैं । ढोल नगारो की प्रचण्ड थाप के चलते इस रस्से को खिंचा जाता है ।तत्पश्चात कुंईरी महादेव कुंईर गांव की परिक्रमा करते हैं और मन्दिर परिसर में देव नृत्य होता है ।