कुमाऊँ-गढ़वाल के गाँवों में आज भी खेतों में काम करने साथ लोकगीत गाकर हो रहा लोकसंस्कृति का संरक्षण…

0
542

कुमाऊँ-गढ़वाल के गाँवों में आज भी खेतों में काम करने साथ लोकगीत गाकर हो रहा लोकसंस्कृति का संरक्षण…

भाष्कर द्विवेदी,जागो ब्यूरो रिपोर्ट:

कुमाऊँ का लोक-साहित्य अत्यन्त समृद्ध है,कुमाऊँ का लोक-साहित्य,लोक गीतों के माध्यम से जन-जन को आकर्षित करता है,लोकगीतों और पौराणिक परम्परा के साथ संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन कुमाऊँनी कृषि सम्बन्धी गीतों में दिखाई देता है,आपको बताते चलें कि पौराणिक परम्परा और अपनी लोककला संस्कृति को वहां आज की पीढ़ी भी उसी तरह से संरक्षित करती आगे बढ़ा रही है, जैसे उनके पूर्वज छोड़कर गये थे कुमाऊँ में जब खेतों में रोपाई या गोड़ाई होती है,तो वहाँ का पूरा वातावरण रंगीला हो जाता है,ऐसे समय जो गीत हुड़की के साथ गाये जाते हैं,उन्हें ‘हुड़किया बौल’ कहा जाता है’गुडैल’ गीत गोड़ाई से सम्बन्धित है,ऐसे गीतों को गाने से पूर्व ‘भूम्याल’,’कालीनर’ देवों की प्रार्थना की जाती है कि वे भूमिपति के सदा अनुकूल रहें, बाद में कथा प्रधान गीत (जैसे बौराण और मोतिया सौन का गीत) आदि गाये जाते हैं,खेती का काम ऐसे गीतों के साथ अति तीव्रता से होता रहता है और काम करने वाले सभी लोगों को संगीत और सुर-लय-ताल में पता ही नहीं चलता कि काम कब खत्म हो गया है,सामाजिक चेतना और सामूहिक रूप से इस तरह की सामुदायिक पहल के माध्यम से अपनी संस्कृति और सभ्यता के साथ अपनी खेती किसानी को भी आगे बढ़ाना देना निश्चित रूप से सराहना के काबिल है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here