72 घण्टे चीन अकेला चीन से लड़ा वीर जसवन्त महान,सरकार अब तो चुकत करो उनका अहसान! ..

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72 घण्टे चीन अकेला चीन से लड़ा वीर जसवन्त महान,सरकार अब तो चुकत करो उनका अहसान! ..
जागो ब्यूरो विशेष:
वीर सैनिकों को उनके शहीदी दिवस पर याद करके भूल जाने की हमें शर्मनाक और अहसानफरामोश आदत पड़ चुकी है,अगर ऐसा न होता तो तो हम पौड़ी जनपद के बीरोंखाल इलाके के बाड़ियूँ गाँव में जन्में महावीर चक्र विजेता शहीद जसवन्त सिंह रावत जी की शहादत को यूँ ही भुला नहीं देते
बीरोंखाल ब्लाक मे दो परमवीर योद्धाओ ने एक ही परिवार मे जन्म लिया,इनमें एक थी वीर बाला तीलू रौतली एवं दूसरे उन्ही के वंश के  “हीरो आँफ नेफा”जसवंत सिह “गोर्ला” रावत,लेकिन  कांग्रेस व भाजपा सरकार ने दोनों ही परमवीर योद्धाओं पर सिर्फ़ राजनीति की एवं अनेकों घोषणायें की,लेकिन धरातल पर कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ,1962 के भारत-चीन युध्द में इस वीर योद्धा ने अकेले तीन दिन/72 घण्टो तक चीन की सेना को रोके रखा और अदम्य साहस और अभूतपूर्व युध्द कौशल का परिचय देते हुये 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों को भी मार डाला,कुछ समय पूर्व उनके इस अभूतपूर्व युध्द कौशल औऱ वीरता पर “72 आवर्स” नाम से एक फ़िल्म भी बनायी गयी जो काफ़ी चर्चित रही
माना जाता है कि केवल उनकी वजह से चीन अरुणांचल प्रदेश को अपने कब्ज़े में न ले सका,अरुणांचल प्रदेश सीमा पर सेना द्वारा आज भी उनके नाम से जसवन्त गढ़ नाम से स्मारक बनाया गया है,आज भी उन्हें जीवित मानते हुये सेना उन्हें इंक्रीमेंट देती है और इस क्षेत्र में पहुँचने वाला हर सैन्य अधिकारी,सैनिक व अन्य व्यक्ति उन्हें सैल्युट करते हुये ही आगे बढ़ता है,यंहा तक कहा जाता है ,कि उनके लिये रोज बिस्तर लगाया जाता है और सुबह उस बिस्तर पर सिलवटें पायी जाती है,सुना यह भी जाता है कि सैन्य सेवाओं में लापरवाही बरतने पर शहीद की आत्मा,सैनिकों को तमाचा मारकर सचेत भी करती है
ये बहस का मुद्दा हो सकता है कि इतने अदम्य साहस और वीरता से देश के लिये लड़ने वाले वीर सैनिक को सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र क्यों नहीं दिया गया?”जागो उत्तराखण्ड” की इस विशेष कवरेज के लिये जब हम बीरोंखाल इलाके के  उनके पैतृक गाँव बाड़ियूँ पहुँचे तो स्तब्ध रह गये कि उनकी याद में जो स्मारक बनाया गया है वह एक सड़क शिलान्यास के पत्थर से ज्यादा कुछ नहीं लगता
क्योंकि उसमें न तो शहीद जसवन्त सिंह जी की कोई प्रतिमा-फ़ोटो लगी है न इसकी चारदीवारी कर इसका सौन्दर्यीकरण ही किया गया है,अलबत्ता सड़क और उनके गाँव में उनके नाम से द्वार जरूर बना दिये गये हैं ,लेकिन “विकास” नाम की कोई चीज़ इस द्वार से गुज़री हो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता,अगर जसवन्त सिंह जी के नाम पर आर्मी या गढ़वाल राइफल का ट्रेंनिग सेन्टर यँहा स्थापित किया जाता तो आने वाली युवा पीढ़ी भी उनसे प्रेरणा लेकर देश का नाम रोशन करती,स्थानीय लोगों का आरोप है कि उनके वीर सपूत जसवन्त सिंह जी की जन्मभूमि की पूरी तरह उपेक्षा कर दी गयी है और गाँव के ठीक नीचे बनी दुनाव जल विधुत परियोजना का नामकरण तक शहीद जसवन्त सिंह जी के नाम से नहीं किया गया एवं इस जल विधुत परियोजना में रोज़गार हेतु भी उनके गाँव के लोगों को कोई  वरीयता सरकार द्वारा नहीं दी गयी,15,16 और 17 नवम्बर को शहीद जसवन्त सिंह रावत जी की जन्मभूमि ग्राम बाड़ियूँ,पट्टी खाटली,विकासखंड बीरोंखाल,जनपद पौड़ी गढ़वाल में  जे.एस.आर.(हीरो ऑफ नेफा)मेमोरियल ट्रस्ट रजि. द्वारा तीन दिवसीय शहीदी मेले और श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है,जिसमें 15 तारीख़ से युवाओं के लिये बालीबाल टूर्नामेन्ट का स्थानीय उद्योगपति सुन्दर सिंह चौहान,16 तारीख़ को सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का पुरुस्कार वितरण गढ़वाल कमिश्नर और कार्यक्रम के अन्तिम दिन  17 नवम्बर को सांस्कृतिक कार्यक्रम और शहीद को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जायेगा, जिसमें स्थानीय लैंसडाउन विधायक दिलीप रावत  व अन्य कई गणमान्य अतिथियों के साथ उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के भी पहुँचने की संभावना है ,जो पौड़ी जनपद से ही ताल्लुख़ रखते हैं,ऐसे में शहीद के गाँव और आस-पास के ग्रामीणों की उम्मीदें परवान चढ़ी हैं, कि राज्य सरकार शहीद जसवन्त सिंह रावत जी के नाम पर कोई संस्थान या उद्योग स्थापित कर या अन्य कोई बड़ी घोषणा करके वीर शहीद के प्रति अपनी कृतज्ञता जरूर व्यक्त करेगी।
https://youtu.be/FeNtaUwVHwM

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