टिहरी झील में ब्रीडिंग सीजन में भी मछलियों का अवैध शिकार…
उत्तराखण्ड बनने के बाद स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसरों में यद्यपि कोई विशेष वृद्धि न हुयी हो ,मगर रोज इस तरह के नये नये मामले प्रकाश में आते रहते हैं,कि अब हमारे जल ,जंगल और जमीन पर हमारे स्थानीय लोगों का नहीं प्रदेश के बाहर के पूंजीपतियों और माफियाओं का कब्ज़ा होता जा रहा है,कोटद्वार के वन माफ़ियाओं को एक्सपोज़ करने के बाद,हमने आपको आल वेदर रोड के निर्माण के नाम पर हाई कोर्ट के आदेश का मज़ाक उड़ाते हुये गंगा और पर्यावरण का विनाश करती एक रसूखदार कम्पनी की कारगुजारी दिखायी, अब आज हम आपको दिखा रहें हैं,देश के बड़े इलाक़े को रोशन करने वाले टिहरी बाँध की झील में मछलियों के ब्रीडिंग सीजन जुलाई -अगस्त में भी प्रतिदिन कुंटलों के हिसाब से विलुप्ति के कगार पर पँहुची महाशीर और अन्य प्रजाति की मछलियों के अवैध शिकार से जलीय पर्यावरण और सरकार को प्रतिदिन लाखों रुपयों के राजस्व की क्षति का सनसनीखेज मामला ,दरअसल टिहरी झील में मत्स्य आखेट का शिकार जनवरी माह में एक कम्पनी डिवाइन कॉर्पस अलाइड प्रोडक्ट्स लिमिटेड कम्पनी को दिया गया था,जिसमें यह शर्त थी कि मछलियों के ब्रीडिंग सीजन जुलाई और अगस्त में मछलियों का शिकार प्रतिबन्धित रहेगा और 1 किलो सेे कम वजन की मछलियों का शिकार बिल्कुल नहीं किया जायेगा, लेकिन 1 जुलाई से ही कम्पनी द्वारा अवैध शिकार की सूचना “जागो उत्तराखण्ड” को मिल रही थी,जिस पर सोमवार को हमारे द्वारा झील के डोबरा निर्माणाधीन पुल के आसपास की गयी कवरेज में कम्पनी द्वारा अवैध शिकार करती हुयी बोट्स और 3 कुंटल से ज्यादा अवैध शिकार की गयी मछलियां पकड़ी गयी,जिसकी सूचना झील के मैनेजमेंट अधिकारियों को दी गयी,लेकिन कम्पनी की लम्बी पहुँच के चलते वे कोई कार्यवाही से झिझकते रहे ,जिसके बाद “जागो उत्तराखण्ड” ने मत्स्य विभाग की मन्त्री रेखा आर्या से सम्पर्क साधा तब कँही जाकर झील अधिकारी हरकत में आये और जलाशय प्रभारी अधिकारी आमोद नौटियाल ने अवैध शिकार की गयी 3 कुंटल से ज्यादा मछलियों,अवैध शिकार में प्रयोग किये जा रहे वाहन तथा कम्पनी के तीन कर्मचारियों के खिलाफ अवैध मत्स्य आखेट की धाराओं में अपराध दर्ज करने की तैयारी पूरी कर ली है,लेकिन इस सबके बीच सबसे बड़ा सवाल ये कि सरकार यंही पर कई वर्षो से प्रतापनगर को जोड़ने वाले बहुचर्चित डोबरा-चांठी पुल को बनाने में तो नाक़ाम रही ही है,कम से कम स्थानीय लोगों को मत्स्य आखेट का लाइसेंस देने में वरीयता देकर कुछ रोज़गार के अवसर तो पैदा करतीऔर प्रदेश से बाहर के पूंजीपतियों और माफ़ियाओं के हाथ अपने संसाधनों को लूटने के लिए सौंप कर, आज भी रोजगार के लिये संघर्ष कर रहे स्थानीय लोगों की भावनाओं को कम से कम आहत तो नहीं करती