धर्म की आड़ में कहीं अराजक तत्वों का अड्डा तो नही बन रहा पहाड़!!!!

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धर्म की आड़ में कहीं अराजक तत्वों का अड्डा तो नही बन रहा पहाड़!!!!

डॉ कपिल पँवार
असिस्टेंट प्रोफेसर
गढ़वाल विश्वविद्यालय

देवभूमि उतराखंड अपने धार्मिक स्थलों के लिए विश्व-विख्यात है। यँहा हर वर्ष लाखों श्रद्धालु चार धामों यमुनोत्री,गंगोत्री,केदारनाथ, बद्रीनाथ धाम के अलावा,अनेक मठ-मंदिरों में अटूट आस्था के साथ पहुंचते हैं,लेकिन इन्ही श्रद्धालुओं की भावनाओं और उतराखंड के सरल-सरस परिवेश को देखकर धर्म की आड़ में कई अराजक-तत्व उतराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को अपना आशियाना बना रहे हैं।चारधाम यात्रा शुरू होने से पूर्व हाल ही में एक घटना मेरे सामने आई है,श्रीनगर गढ़वाल बाजार में शाम के समय दो अधेड़ उम्र के व्यक्ति चिल्लाते हुए और अघौरी बाबा जैसे रौबदार व्यवहार के साथ भिक्षा माँग रहे थे।पास आने पर जब उसने सिर पर हाथ रखने की कोशिश की तो शराब की बद्बू आते ही मैं दूर हट गया और उसे भी हटने को कह दिया,जब उसने बाबा की शक्ति से रौब दिखाने की कोशिश की तो मैंने पुलिस से शिकायत करने की बात कही,लेकिन उसने गजब के आत्मविश्वास के साथ कह दिया कि हम खुद बुला लेते हैं पुलिस को!बड़ा ताज़्जुब हुआ और लगा कि इतना आत्मविश्वास तभी आ सकता है जब व्यक्ति को पुलिस का संरक्षण प्राप्त हो या उसका पद उतना प्रतिष्ठित हो।बहरहाल मैंने भी उसकी फोटो खींचकर पुलिस को सोशल मीडिया के माध्यम से दे दी और उनकी पहचान सत्यापित करने की बात कही। श्रीनगर पुलिस ने भी तत्परता दिखाते हुए कुछ समय बाद उनके पहचान पत्र सोशल मीडिया के माध्यम से प्रेषित किये,जिसके अनुसार दोनों की पहचान आधार कार्ड और मतदान के लिए बनाये गये मतदान प्रपत्र से हुई। पहचान पत्र के अनुसार उनमें से एक देहरादून का और एक हरिद्वार का था।लेकिन अधेड़ उम्र के पहले व्यक्ति के पहचान पत्र के अनुसार उसकी उम्र मात्र 23 वर्ष थी,जिसका नाम भी कोई महात्मा जैसा नही बल्कि हीरोनाथ था।दूसरे का नाम अनूपनाथ था और दोनों के पिता भी नाथ ही थे,यह भी अद्भुत संयोग की बात है।पुलिस ने भी पहचान पत्र देखकर उन्हें छोड़ दिया और पुलिस के पास कुछ ऐसे संसाधन भी नहीं कि वे उनके पहचान पत्र की सत्यता को तत्काल सिद्ध कर सके। सवाल उठता है कि जो व्यक्ति निश्चित रूप से तीस-पैंतीस वर्ष से ज्यादा उम्र का दिख रहा था,वह यदि आधार कार्ड बनाकर स्वयं को 23 वर्ष होने का दावा करता है और वास्तविक पहचान की जगह कुछ भी नाम बताकर आधार कार्ड बनवाये हुए हो,तो क्या उसकी पहचान वही मान लेनी चाहिए।भले ही आज फर्जी पहचान के साथ आधार कार्ड बनाना कुछ हद तक कठिन हो गया हो,लेकिन कुछ वर्ष पूर्व जब गली मौहल्ले में साइबर कैफे,दुकानों को आधारकार्ड बनाने का काम दिया गया था तब यह कार्य कठिन नहीं था और देश में ऐसे कई तथ्य जगजाहिर हो चुके हैं जब नकली आधार कार्ड बनने की पुष्टि हो चुकी है।उक्त घटना का संदर्भ देना मैंने इसलिये जरूरी समझा क्योंकि इससे उभरे तथ्यों पर सरकार को विचार करने की आवश्यकता है।शासन-प्रशासन द्वारा किराये दार,फेरी-रेहड़ी, दुकानदारों की पहचान सम्बन्धित प्रपत्र रखने के नियम तो जारी किए गये हैं,लेकिन प्रस्तुत किये गये पहचान पत्र वास्तविक हैं या जाली इस बात की पुष्टि करना संभव नही है।उतराखंड में चारधाम यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु उतराखंड पहुंचते हैं,रास्ते में अथवा होटलों में ये यात्री के रूप में ठहरते हैं और अपने पहचान पत्र दिखाते हैं,जिससे वे एक तरह की स्वीकृति प्राप्त करते हैं,लेकिन वह पहचान पत्र वास्तविक है या जाली इस बात की पुष्टि तत्काल करना कैसे संभव है,इस बात का जवाब शासन-प्रशासन के पास भी नहीं है। हैरानी तब होती है जब आधारकार्ड ब्लैक एंड व्हाइट हो तो उसकी जगह ऑरिजनल आधार कार्ड माँगा जाता है और यदि रंगीन लेमिनेटेड कार्ड हो तो उसे वास्तविक समझा जाता है! जबकि आज फोटोशॉप तकनीक इतनी आसान हो चुकी है कि किसी भी प्रपत्र के साथ छेड़छाड़ करके उसे बदलकर आसानी के साथ तैयार किया जा सकता है। उतराखंड में ही नही धार्मिक स्थलों में साधु-सन्यासी के रूप में रहना आसान है और अराजक तत्वों के लिए इस तरह नकली पहचान पत्र बनाकर रहना कानून की आखों में धूल झौंकना कोई कठिन काम नही है। ऐसे में सरकार को सोचना होगा कि कहीं उतराखंड के सरल-सरस परिवेश और यहां के धार्मिक स्थल ऐसे अराजक तत्वों के अड्डे तो नही बन रहेे हैं? शासन-प्रशासन को पहचान पत्र के नाम पर पेश किए कागज के टुकड़ों के सहारे हर किसी को आश्रय देने से पहले गंभीरता से इन बातों पर सोचने की जरूरत है।

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