प्रदेश में मूल निवास और भू कानून के लिये चल रहे जन-आंदोलन के बीच,मुख्यमन्त्री धामी प्रदेश में समान नागरिकता कानून लागू(UCC)लागू करने की जिद पर अड़े हुये हैं।इससे पहले राज्य स्थापना दिवस 09 नवम्बर 2024 को सीएम धामी ने यह कानून प्रदेश में लागू करने की घोषणा की थी,लेकिन उक्रान्द की ताण्डव रैली और स्व० उक्रान्द नेता त्रिवेन्द्र सिंह पँवार के इस कानून के ख़िलाफ़ 48 घण्टे के उपवास के बाद सीएम धामी ने इस कानून को लागू करने से हाथ पीछे खींच लिये थे,लेकिन पिछले महीने ही एक संदिग्ध दुर्घटना में स्व०पँवार की मौत और केदारनाथ चुनाव में जीत से अपनी सीएम की कुर्सी के मजबूत होने के बाद, सीएम धामी ने एक बार फिर प्रदेश में समान नागरिकता कानून लागू करने की ताल ठोक कर,पीएम मोदी के आगे उत्तराखण्ड को यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य बनाने वाला रिपोर्ट कार्ड पेश कर अपने नम्बर बढ़ाने की ठान ली है।इस कानून के माध्यम से एक साल उत्तराखण्ड में रहने पर ही बाहरी प्रदेश के निवासी को उत्तराखण्ड के स्थायी निवासी का दर्जा देकर और लिव इन रिलेशन को देवभूमि में प्रोत्सा हित कर देवभूमि की संस्कृति को अपमानित करते हुये,इस तरह के सामाजिक रूप से अवैध संबंधों से जन्मे बच्चों को भी प्रदेश के स्थायी निवासी का दर्जा देकर,यंहा के मूल निवासी के रोज़गार और भूमि खरीद-फ़रोख़्त के अधिकार पर अतिक्रमण करने का उक्रान्द लगातार ताण्डव रैली के माध्यम से विरोध भी कर रहा है,लेकिन धामी सरकार इस कानून में कोई भी संसोधन करे बग़ैर ही प्रदेश की जनता को बरगलाकर कि ये धर्म विशेष के ख़िलाफ़ और प्रदेश की जनता के हित में है,इस मूल निवासी और भू-कानून के विशेषाधिकार की खिलाफत करने वाले कानून को जबरन प्रदेश की जनता के ऊपर थोपने पर आमादा हैं।मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कह रहे हैं कि उत्तराखंड में जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता लागू हो जायेगी।इसके लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। इस तरह उत्तराखण्ड, आजादी मे बाद समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जायेगा।सीएम धामी इसे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं,जबकि इस कानून की खामियों के चलते देश के किसी भी राज्य की सरकार ने इसे लागू करने की अभी तक हामी नहीं भरी है और वाज़िब सवाल ये भी कि अगर वाक़ई ये सभी धर्म के नागरिकों को समान अधिकार देने वाला कानून है,तो इसे सिर्फ़ उत्तराखण्ड पर ही लागू क्यों किया जा रहा है,पूरे देश की जनता पर क्यों नहीं? सवाल ये भी कि अगर देश की सम्पूर्ण जनता को एक ही कानून के दायरे में लाना सम्भव होता,तो फ़िर भारत के संविधान में आरक्ष ण,पाँचवी अनु सूची,छटवीं अनुसूची जैसे नागरिकों को विशेषा धिकार देने वाले प्रावधान क्यों?क्या वाक़ई समान नागरिकता कानून हमारे संविधान की भावना के सतत है भी या कि नहीं,ये स्वयं में एक बड़ा संवैधानिक सवाल भी है ! बहरहाल बुधवार को सचिवालय में उत्तराखंड निवेश और आधारिक संरचना विकास बोर्ड (यूआईआई डीबी) की बैठक के दौरान सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि प्रदेश सरकार अपने संकल्प के अनुसार, समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में होमवर्क पूरा कर चुकी है।उन्होंने कहा कि मार्च 2022 में प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्णय लिया गया था।सीएम धामी की यूसीसी लागू करने की जल्दबाजी और जोर-जबरदस्ती के बीच प्रदेश निर्माण कारी दल उक्रांद,जो इस कानून के ख़िलाफ़ सबसे ज्यादा मुखर है,ने भी इस मूल निवासी विरोधी कानून को उत्तरा खण्ड पर लागू करने का पुरज़ोर विरोध करने की रणनीति बना ली है,ऐसे में सीएम धामी को प्रदेश में यूसीसी लागू करने से पहले उक्रान्द के कड़े विरोध का भी सामना करना पड़ेगा।