प्रचण्ड बहुमत की भाजपा सरकार की बागडोर एक मजबूत विधायक को सौंपने में असमंजस क्यों?
आशुतोष नेगी,प्रधान सम्पादक, जागो उत्तराखण्ड:
उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की है।प्रदेश की कुल 70 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 48 सीटें जीती हैं, जबकि 18 सीटें काँग्रेस के खाते में गयी हैं,जबकि 04 सीटें अन्य दलों व निर्दलीयों को मिली हैं। खटीमा विधानसभा सीट से सीएम पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए हैं,उन्हें काँग्रेस के भुवन कापड़ी ने 6951 मतों के भारी अंतर से हराया है,जिससे उनका सीएम के लिये दावा मीडिया में बहुप्रचारित होने के बावजूद ख़ारिज होता दिखायी देता है,अपनी ही विधानसभा की जनता द्वारा नकारे गये पूर्व सीएम धामी को दोबारा मुख्यमन्त्री बनाना एक तरह से लोकतन्त्र का अपमान और खटीमा की जनता से भी क्या छल नहीं होगा?धामी को मुख्यमन्त्री बनाकर फिर उनके लिये फिजूलखर्ची कर जनता पर गैरजरूरी आर्थिक बोझ डाल कर उपचुनाव कराना और फ़िर हार का रिस्क लेकर सरकार के अस्थिर होने की संभावना को भी भाजपा हाईकमान आख़िरकार क्यों ज़िन्दा करना चाहेगी?जिससे प्रदेश में पिछली भाजपा सरकार की भान्ति एक बार फ़िर बार-बार मुख्यमन्त्री बदलना पड़े! कुल मिलाकर बीजेपी बहुमत के साथ एक मजबूत सरकार बनाने जा रही है,जिसका नेतृत्व एक मजबूत विधायक के हाथ में ही होना चाहिये,जो पाँच साल तक मजबूती से डबल इन्जन सरकार को चला सके।इस परिपेक्ष्य में उत्तराखण्ड के बारहवें मुख्यमन्त्री के रूप में श्रीनगर विधायक डॉ धन सिंह रावत का दावा सबसे मजबूत नजर आता है,जिसमें डॉ धन सिंह द्वारा लम्बे समय से राष्ट्रीय स्वयं संघ और पार्टी की सेवा किया जाना प्रमुख कारण है,उनके द्वारा कड़े मुक़ाबले में काँग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को हराकर एक तरह से काँग्रेस की पूरी तरह से कमर तोड़ना भी उनके पक्ष में गया है,इस सीट पर काँग्रेस ने अपनी पूरी शक्ति झोंक रखी थी,बावजूद इसके डॉ धन सिंह रावत ने काँटे के मुकाबले में जीत दर्ज कर काँग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को विपक्षी दल के नेता के रूप में भी विधानसभा में दाख़िल होने से रोककर काँग्रेस की हालत और पतली कर दी है,क्योंकि उधर लालकुँआ से चुनाव हारकर पूर्व मुख्यमन्त्री हरीश रावत भी अब विधानसभा सदन में नहीं दिखायी देंगे!श्रीनगर विधानसभा में डॉ धन सिंह रावत द्वारा किये गये रिकॉर्ड तोड़ जनहित के कामों की प्रदेश की किसी अन्य विधानसभा में मुक़ाबला नहीं है,उनकी इस कार्यक्षमता का भी मुख्यमन्त्री पद हेतु नाम फाइनल करने से पूर्व भाजपा हाईकमान को आंकलन करना चाहिये।मुख्यमन्त्री के रूप में पौड़ी गढ़वाल जनपद के डॉ धन सिंह रावत के साथ,चौबट्टाखाल विधायक सतपाल महाराज और महिला मुख्यमन्त्री के रूप में ऋतु खण्डूरी के नाम पर भी चर्चाएं हैं,लेकिन पूर्व की भांति कुछ वर्ष पूर्व ही काँग्रेस से भाजपा में आना सतपाल महाराज के दावे को कमज़ोर कर रहा है,जबकि प्रदेश की पहली महिला मुख्यमन्त्री के रूप में प्रोजेक्ट की जा रही यमकेश्वर से पूर्व में विधायक रही ऋतु खण्डूरी का कार्यकाल उल्लेखनीय न रहने पर,वँहा पर नये प्रत्याशी रेणु बिष्ट को टिकट दिया जाना और कोटद्वार से अप्रत्याशित जीत हासिल करना,कोटद्वार में उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी मैजिक की जीत ज्यादा लगता है और मुख्यमन्त्री पद पर उनके दावे को कमजोर करता है।दूसरी ओर पूर्व मुख्यमन्त्री रिटायर्ड जनरल भुवन चन्द्र खण्डूरी के परिवार से उनके पुत्र मनीष खण्डूरी का काँग्रेस की राह चलना और पुत्री का भाजपा की राह चलकर हमेशा सत्ता के साथ बने रहने का फॉर्मूला भी भाजपा हाईकमान को भी शायद ही रास आये!पूर्व मुख्यमन्त्री खण्डूरी को फौज की नौकरी करने के बाद आसानी से मुख्यमन्त्री की कुर्सी मिल गयी थी और उनकी बेटी भी बिना पार्टी के झंडे-डंडे उठाये हुये परिवारवाद की चाँदी की चम्मच के सहारे भाजपा में मान-सम्मान सब कुछ हासिल कर रही हैं,जो वर्षों तक पार्टी को अपने ख़ून-पसीने से सींच कर और लाखों कार्यकर्ताओं की मेहनत की मदद से भाजपा में अपना मुक़ाम बनाने वाले नेताओं के लिये बेहद निराशाजनक है।इसी कुनीति पर चलकर आज देश की सत्ता में सत्तर वर्षों तक काबिज़ रही काँग्रेस, परिवारवाद के कोड़ से अपनी दुर्गत करवा चुकी है। भाजपा हाईकमान काँग्रेस के इस हश्र से सबक सीखते हुये उत्तरप्रदेश की भान्ति उत्तराखण्ड में भी पाँच साल मजबूती से डबल इंजन को रफ़्तार देने वाला,कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय जमीनी मुख्यमन्त्री दे तो विकास की आस में लगातार दूसरी बार प्रदेश की जनता द्वारा दिये गये प्रचण्ड बहुमत की परिणीति,प्रदेश में डबल इंजन के डबल विकास के रूप में धरातल पर भी साकार हो सकती है।