फ्यूंली के फूल की कहानी:गाँव से जुदाई बर्दाश्त नही कर पायी थी फ्यूंली!..
जागो ब्यूरो रिपोर्ट:
आज मनाये जा रहे फूलदेई के त्योहार में बच्चों द्वारा फ्यूंली के फूलों को घरों की चौखटों पर डालकर लोगों को समृद्धि और खुशहाली की शुभकामनाएं दी जाती है,पौराणिक लोककथाओं में फ्यूंली के फूल की कहानी भी बड़ी भावपूर्ण और अचरज भरी है।पौराणिक लोक कथाओं के अनुसार फ्यूली एक गरीब परिवार की बहुत सुंदर कन्या थी।एक बार गढ़ नरेश राजकुमार को जंगल में शिकार खेलते खेलते देर हो गई, रात को राजकुमार ने एक गाँव में शरण ली। उस गाँव में राजकुमार ने बहुत ही खूबसूरत अप्सरा रूपी फ्यूंली को देखा तो वह उसके रूप में मंत्रमुग्ध हो गया।राजकुमार ने फ्यूंली के माता-पिता से फ्यूंली से शादी करने का प्रस्ताव रख दिया,तो फ्यूंली के माता-पिता खुशी-खुशी राजा के इस प्रस्ताव को मान गए। शादी के बाद फ्यूंली राज महल में आ तो गयी,लेकिन राजशी वैभव उसे एक कारागृह लगने लगा!चौबीसों घंटे उसका मन अपने गाँव में लगा रहता था,राजमहल की चकाचौंध से फ्यूंली को असहजता महसूस होने लगी फ्यूंली ने राजकुमार से मायके जाने की जिद पकड़ ली।गाँव में फ्यूंली पहुंची तो गयी,लेकिन इस दौरान फ्यूंली किसी गम में धीरे-धीरे कमजोर होकर मरणासन्न हो गयी।बाद में राजकुमार ने गाँव आकर फ्यूंली से उसकी अंतिम इच्छा पूछी तो उसने कहा कि उसके मरने के बाद उसे गाँव की किसी मुंडेर की मिट्टी में समाहित किया जाए।फ्यूंली को उसके मायके के पास दफना दिया जाता है।उस स्थान पर कुछ दिनों बाद पीले रंग का एक सुंदर फूल खिलता है,इस फूल को फ्यूंली का नाम नाम दे दिया जाता है और तब से उसकी याद में पहाड़ों में फूलों का त्योहार फूलदेई मनाया जाता है।