शेम शेम सरकार…पहाड़ी फ़ल हो रहे बेक़ार
सर्दियों के मौसम में उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपदों में बहुतायद से होने वाला माल्टा का फल,पहाड़ों से रोज़गार की तलाश में हो रहे पलायन पर घड़ियाली आँसू रोने वाली डबल इन्जन सरकार की अनदेखी के कारण आज भी टनों के हिसाब से बर्बाद रहा है,कुछ स्थानीय मेहनतकश काश्तकार इसका जूस बनाकर, इसको बाज़ार तक़ लाने का प्रयास तो कर रहे हैं,लेकिन पहाड़ी जनपदों में कोल्ड स्टोरेज का न होना और सरकार द्वारा इसका उचित विपणन मूल्य घोषित न किये जाने कारण या तो ये पेड़ पर ही सड़ जाता है या औने-पौने दाम में बेच दिया जाता है,जबकि गर्मियों के दिनों में विभिन्न राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा इसको जूस और कोल्ड ड्रिंक के रूप में पैक कर बेचा जाता है, हमारा पड़ोसी पहाड़ी राज्य हिमाँचल प्रदेश, अपने इन्ही संसाधनो के बल पर अपने किसानों को अच्छी खासी आय दिलवा रहा है,क्या माने उत्तराखण्ड की सरकारों में अपना बुध्दि विवेक है ही नहीं, कि वो अपने पड़ोसी राज्य की नक़ल भी कर सके या क्या वो इतनी नाकारा है,कि राज्य स्थापना सत्रह साल बाद भी बड़ी आसानी और कोई ख़ास मेहनत के होने वाले इस पहाड़ी फ़ल का उचित सदुपयोग करने की कोई रणनीति ही बना सके?