फर्जी (काल्पनिक) फल उत्पादन आंकड़ों के सहारे राज्य नाशपाती, आड़ू,पल्म एवं खुवानी फल उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर..
डा० राजेन्द्र कुकसाल।
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राज्य के सही नियोजन हेतु आवश्यक है कि उसके पास वास्तविक आंकड़े हों किन्तु उत्तराखंड राज्य में फर्जी/ काल्पनिक फल उत्पादन के आंकड़ों के सहारे नियोजन की बात की जारही है।ये मैं नहीं कह रहा बल्कि बर्ष 1986 में उत्तर प्रदेश के आठ पहाड़ी जनपदों में उद्यान विकास हेतु तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री नारायण दत्त तिवारी जी ने *बक्सी एवं पटनायक कमेटी* का गठन विश्व बैंक हेतु प्रोजैक्ट बनाने के उद्देश्य से किया किया। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट के पृष्ट संख्या दस मेंं लिखा है कि फलौ के अन्तर्गत दर्शाये गये क्षेत्र फल व उत्पादन के आंकड़े मात्र 13% ही सही है खराब फल पौध व अनुचित तरीके से पैकिंग व कृषकों के खेत तक फल पौध ढुलान करने के कारण 40% पौधे पौध लगाने के प्रथम बर्ष में ही मर जाते हैं विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर बर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलौं का उत्पादन बढाता रहता है इसलिए दर्शाते गये आंकड़े सही नहीं है।पलायन आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार पौड़ी जनपद में उद्यान विभाग द्वारा फल उद्यान के अन्तर्गत बर्ष 2015-16 में 20301 हैक्टियर क्षेत्रफल दर्शाया गया है। पलायन आयोग के बर्ष 2018-19 सर्वे में पाया गया मात्र 4042 हैक्टेयर क्षेत्र फल याने 16259 हैक्टेयर कम यही स्थिति सभी जनपदों में पाई जायेगी।उद्यान विभाग द्वारा बर्ष 2015–16 के फल उत्पादन के आंकड़ों एवं प्रगति रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य नाशपाती, आड़ू , पल्म तथा खुवानी फल उत्पादन में पूरे देश में प्रथम स्थान पर तथा अखरोट उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर है।आंकड़ों के अनुसार नाशपाती 13029 हैक्टियर उत्पादन 78778 MT, आड़ू 7855 हैक्टेयर उत्पादन 57933 MT, प्लम 8837 हैक्टेयर उत्पादन 36154 MT, खुवानी 7954 हैक्टियर उत्पादन 28197 MT, अखरोट 17243 हैक्टेयर उत्पादन 19322 MT तथा सेव के अन्तर्गत 24982 हैक्टियर व उत्पादन 51940 MT दर्शाया गया है।जवकि वास्तविकता यह है कि जव हम चार धाम यात्रा पर याने गंगोत्री यमुनोत्री श्रीबद्रीनाथ व केदारनाथ भ्रमण पर जाते है जिसमें राज्य के पांच पर्वतीय जनपदों का भ्रमण हो जाता है आपको 1200 मीटर की ऊंचाई तक कहीं कहीं घाटियों में आम बीजू के पौधे उससे ऊपर के क्षेत्रों में खेतों के किनारे व गधेरों में अखरोट के पौधे देखने को मिलते है ऊंचाई वाले क्षेत्रों में माल्टा पहाडी नीम्बू व चूलू खुवानी बीजू के पौधे देखने को मिलेगें रास्तों पर कहीं पर भी स्थानीय उत्पादित फल यात्रा सीज़न याने मई से अक्टूबर माह तक बिकते नहीं दिखते कुमाऊं मण्डल में भवाली गर्मपानी रानीखेत व कुछ अन्य स्थानों में स्थानीय उत्पादित फल बिकते हुए दिखाई देते हैं।द्वाराहाट व चौखुटिया क्षेत्र में गोला नाशपाती का उत्पादन होता है जिसका बाजार भाव कास्तकारों को अच्छा नहीं मिलता है।वहीं दूसरी ओर यदि हिमाचल राज्य का भ्रमण करते हैं तो पोंठा साहव से आपको किन्नो व नीम्बू वर्गीय फलों के बाग दिखाई देते हैं सोलन के आसपास के क्षेत्रों में माह अप्रैल मई में चारों तरफ प्लम के बागों में सुफेद फूल दिखाई देते हैं तथा जुलाई अगस्त माह में सड़कों के किनारे पर प्लम सेंटारोजा के ढेर दिखाईं देते हैं।कुलू मनाली में सड़क के दोनों तरफ सेब के बाग दिखाई देते हैं।पूहू व लाहोल सफ्ति क्षेत्र में होप्स व खुबानी सकरपारा व चारमग्ज के बाग दिखाई देते हैं।कहने का अभिप्राय यह है कि राज्य में नाशपाती ,आडू , प्लम , खुबानी के बहुत कम बाग देखने को मिलते है । फिर भी आकडो मै देश है प्रथम स्थान पर है।अखरोट का कहीं कोई बाग बिकसित नहीं है बाग का अभिप्राय अख़रोट की नोन किस्म के 100 -200 पौधे एक साथ ले आउट में लगे हुए हों ऊचाई वाले क्षेत्रों में खेतों के किनारे या गधेरों में गांव के पास कहीं कहीं बीजू अखरोट के पौधे दिखाई देते हैं ।चकरौता नैनबाग रामगढ़ व पिथौरागढ़ चमोली व उतर काशी जनपद के कुछ क्षेत्रों में जंगल के रूप में अखरोट के पौधे दिखाई देते हैं यदि हम को अखरोट के कलमी पौधौ की व अखरोट बीज की आवश्यकता होती है तो हम हिमाचल या काश्मीर का रुख कर ते है फिर भी हम अखरोट उत्पादन में पूरे देश में द्वितीय स्थान पर है।नाशपाती की मैक्स रैड व रैड बबूगोसा के फल बाजार में हिमाचल व काश्मीर के बिकते हैं फिर भी हम नाशपाती उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर है।यही स्थिति प्लम व आडू उत्पादन की है ।कुछ क्षेत्रों नैनीताल जनपद के रामगढ़ टिहरी के नैनबाग क्षेत्र में कास्तकार अपने व्यक्तिगत प्रयासों से सेव के बाग हटा कर आड़ू के नये बाग बिकसित कर रहे है जिससे उन्हें अच्छा आर्थिक लाभ भी मिल रहा है ।सेव में भी उत्पादन बहुत अधिक दर्शाया गया है सेव के पुराने बाग नष्ट हो चुके हैं नये बाग लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं किन्तु सफलता नहीं मिल पा रही है ।यदि जनपद वार फल उत्पादन की विस्तृत जानकारी की जाय तो टिहरी जनपद में 20942 हैक्टियर क्षेत्र फलौं के अन्तर्गत दर्शाया गया है तथा फलों का उत्पादन 28510 MT दिखाया गया है जब कि वास्तविकता यह है कि चम्बा मसूरी फल पट्टी ,काणाताल,धन्नोल्टी,मगरा ,प्रताप नगर, मांजफ आदि क्षेत्रों में लगे पुराने सेव के बाग समाप्त हो चुके हैं यदि कहीं पर सेव के बाग दिखाई भी देते हैं तो वे un productive हैं । नये सेव के बाग लगाये गये किन्तु गलत नियोजन एवं गलत क्रियान्वयन के कारण सफलता नहीं मिली ।पौडी जनपद में भी पौड़ी, खाण्यूसैण,खिर्सू , भरसार ,थलीसैण,धूमाकोट आदि छेत्रों में लगे पुराने सेव के बाग समाप्त हो चुके हैं नये सेव के बाग विभिन्न योजनाओं में लगाये गये किन्तु वे विकसित नहीं हो पा रहे हैं नाशपाती, आडू ,प्लम ,खुवानी, अखरोट के बाग कम ही हैं जो un productiveहैं या जिनमें उत्पादकता बहुत ही कम है फिर भी फल पौध के अंतर्गत 20781 हैक्टेयर तथा उत्पादन 33330 MT दर्शाया गया है यही स्थिति फल उत्पादन मे अन्य पर्वतीय जनपदों की भी है ।उत्तरकाशी जनपद व राज्य के हिमाचल से लगे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तथा पिथौरागढ़, चमोली जनपदों के बहुत अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र जो हिमालय के समीप है उन क्षेत्रों मैं सेब का अच्छा उत्पादन हो रहा है तथा सेव के कुछ नये बाग भी विकसित हुये है।नैनीताल जनपद के रामगढ़ क्षेत्र में कृषकों ने सेब के पेड़ हटा कर आड़ू प्लम, नाशपाती के अच्छे बाग विकसित किए हैं जिनसे इन्है अच्छा उत्पादन मिल रहा है। सेब में रायमर व जौनाथन का भी अच्छा उत्पादन हो रहा है।वर्तमान में इस क्षेत्र में कुछ छोटी प्रौसिसिगं यूनिट भी लगी है।बर्ष 2005 से शासन लगातार उद्यान विभाग को फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक करने के निर्देश दे रहा है जिसके अनुपालन में राज्य के सभी जनपदों में राजस्व विभाग से सहयोग ले कर फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े एकत्रित कर निदेशालय भेजे किन्तु 13 बर्षों से अधिक समय व्यतीत होने के बाद भी विभाग द्वारा फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गये हैं।पलायन आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार पौड़ी जनपद में उद्यान विभाग द्वारा फल उद्यान के अन्तर्गत बर्ष 2015-16 में 20301 हैक्टियर क्षेत्रफल दर्शाया गया है। पलायन आयोग के बर्ष 2018-19 सर्वे में पाया गया मात्र 4042 हैक्टेयर क्षेत्र फल यही स्थिति सभी जनपदों में पाई जायेगी।
फर्जी फल उत्पादन के आंकड़ों के सहारे लगी सभी बड़ी खाद्य प्रसंस्करण यूनिटें बन्द हुई है..
रामगढ नैनीताल में 70 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई थी फ़ल उपलब्ध न होने के कारण बन्द करदी गयी।
इसी प्रकार अल्मोड़ा जनपद के मटेला में 80 के दशक में करोंड़ों रुपए खर्च कर कोल्ड स्टोरेज बना जो आज फल उपलब्ध न होने के कारण बन्द पडाहै ।
रानीखेत चौबटिया गार्डन की एपिल जूस प्रोसिसिग यूनिट बन्द पड़ी है।
चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में भी 80 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट खुली और बन्द हुई।
रुद्रप्रयाग जनपद के तिलवाड़ा में भी फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई वह भी अधिक तर बन्द ही रहती है।
उत्तरकाशी व चमोली में भी कोल्ड स्टोरेज बने व बन्द पडे है।
कई स्वयंम सेवी संस्थाओं एवं परियोजनाओं के माध्यम से फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई किन्तु फल उपलब्ध न होने के कारण नहीं चल पाई।
पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं कहीं पर व्यक्तिगत Small scale prossesing unit लगी है वे भी हरिद्वार आदि स्थानों से किन्नो संतरा का पल्प/जूस इक्ट्ठा कर माल्टा जूस के नाम पर बेच रहे हैं।
किसी भी राज्य के सही नियोजन के लिए आवश्यक है कि उसके पास वास्तविक आंकड़े हों तभी भविष्य की रणनीति तय की जासकती है। काल्पनिक (फर्जी) आंकड़ों के आधार पर यदि योजनाएं बनाई जाती है तो उससे आवंटित धन का दुरपयोग ही होगा।
उद्यान विभाग के आंकड़ों का लिंक-
http://shm.uk.gov.in/
पूर्व लोकपाल मनरेगा
मोबाइल नंबर- 7055505029