योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं विकसित हो पा रहें हैं आम के नये बाग..

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फलों के राजा आम के नये बाग विकसित न होना चिन्ता का सबब..

योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं विकसित हो पा रहें हैं आम के नये बाग..

डा राजेन्द्र कुकसाल
rpkuksal.dr@gmail.com

यथा स्थान (in situ)विधि से पहाड़ी क्षेत्रों में करें विकसित आम के बाग…

फलों के राजा आम के नये बाग विकसित न होना चिन्ता का सबब..

आम उत्तराखंड के मैदानी व मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों का एक मुख्य फल है ‌। राज्य में 35911 हैक्टेयर क्षेत्र फल आम के बाग है जिनसे 149727 मैट्रिक टन फसल प्राप्त होती है।पहाड़ी क्षेत्रो में आम की फसल मैदानी क्षेत्रो की अपेक्षा एक माह बाद ( जौलाई /अगस्त ) में पक कर तैयार होती है । इस प्रकार यहां का आम उत्पादक आम की फसल से अच्छा आर्थिक लाभ ले सकता है ।पहाड़ी क्षेत्रो में आम के बीजू पौधे 1400 मीटर (समुद्र तल से ऊंचाई) तक देखे जा सकते है । किन्तु आम की अच्छी उपज समुद्र तल से 1000 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानो से ही प्राप्त होती है । अधिक ऊंचाई वाले स्थानो मै उपज कम हो जाती है।उद्यान विभाग द्वारा विभिन्न योजनाओ- जिला योजना, राज्य सैक्टर की योजना, हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन ,कृषि विकास योजना आदि में विगत कई वर्षों से आम फल पट्टी विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।उद्यान विभाग के अतिरिक्त जलागम,ग्राम्या,जाइका, एकीकृत आजीविका स्पोर्ट परियोजना (आजीविका), सहकारिता विभाग, मंडी परिषद तथा सैकड़ों गैर सरकारी संगठन योजनाओं पर करोड़ों रुपए आम फल पट्टी विकसित करने के नाम पर प्रति बर्ष हजारौं करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं किन्तु पहाड़ी क्षेत्रों में नये आम के बाग कहीं भी विकसित होते नहीं दिखाई देते जब कि विभिन्न योजनाओं में प्रति वर्ष लाखौ की संख्या मै आम के पौधौ का रोपण विगत कई वर्षो से किया जा रहा है।आम के कलमी पौधे रोपण हेतु पहाड़ी क्षेत्रों में राज्य के मैदानी क्षेत्रों या उत्तरप्रदेश के मलीहाबाद सहारनपुर आदि स्थानो की पंजिकृत पौधालयों से आपूर्ति किये जाते है।राज्य में पंजीकृत पौधालयौ में आम के उतने पौधों का उत्पादन नहीं होता जितनी विभिन्न विभागों की योजनाओं में आम के पौधों की मांग रहती है नर्सरी वाले मलीहाबाद या सहारनपुर आदि स्थानों से 15–20 रुपया प्रति पौधा खरीद कर उत्तराखंड में चल रही योजनाओं में 40–50 रुपया प्रति आम का पौधा दे रहे हैं।आपूर्ति किये गये इन आम के पौधौ मै Feeder roots काफी कम होती है तथा मुख्य जड कटी हुयी होती है। यदि आप आम के इन पौधौ की पिन्डी(जडो पर लिपटी मिट्टी) को हटायेगें तो स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। ऐसा पौध उत्पादकों का अधिक आर्थिक लाभ लेने की वजह से मानको का पालन न करना है तथा अधिकारियों का अपने कमिशन के चक्कर में नजर अंदाज करना है।मैदानी क्षेत्र से आपूर्ति किये गये इन पौधौ कि ज्यादातर पिन्डियां सडक द्वारा याता-यात में मानकौ का पालन न करना( दो ट्रकौ के पौधे एक ही ट्रक द्वारा ढुलान भले ही कागजौ में ढुलान पर दो ट्रक दिखाये जाते हों) एंव सडक से किसान के खेत तक पहुचाने मै टूट जाती है जिससे पौधौ को काफी नुकसान होता है। खेत मै इन पौधौ को लगाने पर प्रथम वर्ष मै ही 40-60 % तथा आगामी एक या दो वर्षो मै 80 % तक मृत्युदर हो जाती है । इससे कास्तकार को काफी आर्थिक नुकसान पहुंचता है तथा उसका योजनाओं से विश्वास भी हटता जा रहा है।यह क्रम विगत कई वर्षो से चल रहा है विभाग को इस प्रकार की योजनाओ का वास्तविक मूल्याकन कर योजनाओ में अपेक्षित परिवर्तन कर सरकारी धन के दुरपयोग को रोकना चाहिए।

पहाड़ी क्षेत्रों में कैसे विकसित करें आम के बाग-
In-situ (यथा स्थान) ग्राफ्टिग कर करें पहाडी क्षेत्रों में आम के बाग विकसित..

आम के बाग लगाने हेतु समुद्र तल से 1000 मीटर तक ऊचाई वाले स्थानों या जिन स्थानो पर पहले से ही आम के बाग अच्छी उपज दे रहे है का चयन करे पूर्वी व उत्तरी ढलान वाले स्थान व हिमालय के समीप वाले स्थानों पर अधिक ऊंचाई पर आम के बाग नहीं लगाने चाहिए।जिन स्थानो पर पाला ज्यादा पडता हो उन स्थानों का चयन ना करे।

भूमि का चुनाव एवं मृदा परीक्षण-

आम के पौधे पथरीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में पैदा किये जा सकते हैं। परन्तु जीवाँशयुक्त बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो सर्वोत्तम रहती है ।जिस भूमि में आम का उद्यान लगाना है उस भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं जिससे मृदा का पीएच मान (पावर औफ हाइड्रोजन या पोटेंशियल हाइड्रोजन ) व चयनित भूमि में उपलव्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके।पीएच मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है यह पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है यदि मिट्टी का पीएच मान कम (अम्लीय)है तो मिट्टी में चूना या लकड़ी की राख मिलायें यदि मिट्टी का पीएच मान अधिक (क्षारीय)है तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट,(जिप्सम) का प्रयोग करें। भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाये जाने वाले लाभ दायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है साथ ही हानिकारक जीवाणुओं /फंगस में बढ़ोतरी होती है साथ ही मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्त्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आम के लिए 6.5 – 7.5 के पीएच मान की भूमि उपयुक्त रहती है।

पौध लगाने से पूर्व रेखांकन करें..

माह मई/जुन में 10×10 मीटर (लाइन से लाइन 10 मीटर तथा लाइन मै पौध से पौध की दुरी 10 मीटर) पर 1x1x1 मी के गड्ढे खोदें 15 से 20 दिनों के लिए गड्ढों को खुला छोड देना चाहिए ताकि सूर्य की तेज गर्मी से कीडे़ मकोड़े मर जाय। गड्डा खोदते समय पहले ऊपर की 6″तक की मिट्टी खोद कर अलग रख लेते हैं इस मिट्टी में जींवास अधिक मात्रा में होता है गड्डे भरते समय इस मिट्टी को पूरे गड्डे की मिट्टी के साथ मिला देते हैं इसके पश्चात एक भाग अच्छी सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट जिसमें ट्रायकोडर्मा मिला हुआ हो को भी मिट्टी में मिलाकर गढ्ढों को जमीन की सतह से लगभग 20से 25 से॰मी॰ ऊंचाई तक भर देना चाहिए ताकि पौध लगाने से पूर्व गढ्ढों की मिट्टी ठीक से बैठ कर जमीन की सतह तक आ जाये।

स्थानीय पके आम(बीजू/कलमी) के फलौ की गुठलियां इकठ्ठा करें। बाजार मै उपलब्ध पके आमो की गुठलियां भी इकठ्ठा कर सकते हैं। इकठ्ठा की गयी गुठलियों को पानी से भरी बाल्टी मै डालें तथा जो गुठलियां तैर रही हों उन्हे अलग कर फेंक दे। पानी मै डुबी गुठलियों को इकठ्ठा कर किसी नम स्थान पर रखे । आम की गुठलियां अन्यत्र से भी इकठ्ठा कर मंगाई जा सकती है ।

एक हैक्टियर( 50 नाली ) मै बाग विकसित करने हेतु 220-250 गुठलियों की आवश्यकता होगी । दो – दो गुठलियां पहले से ही तैयार गड्डों मै रोपित करें।

माह सितम्बर तक इन गुठलियों मै जमाव हो जाता है। आवश्यकतानुसार इन पौधौ कि सिंचाई व निराई, गुढाई करते रहे अगले वर्ष जौलाई/अगस्त तक ये पौधै पेन्सिल साइज के मोटे हो जायेगें तथा ग्राफ्टिंग हेतु तैयार हो जायेगें।

कलम बाधना (Grafting ) –

जुलाई/अगस्त का माह ग्राफ्टिंग हेतु उपयुक्त समय होता है उस समय वातावरण मै नमी रहती है।
कलम बाधना (ग्राफ्टिंग) वह प्रक्रिया है जिसमे दो पौधौ के कटे भागों को इस प्रकार बाधंते है कि दोनो एक दुसरे से जुड जायें और एक नये पौधे के रुप मै बढने लगे ।

आम मै कलम बाधने के अनेक तरीके है इनमें सबसे आसान और अपनाये जाने वाला तरीका है फन्नी कलम बाधना जिसे हम Clift Grafting और wedge grafting कहते है ।

कलम बाधने की इस विधि में सबसे पहले जिन किस्मों( दशहरी चौसा, बाम्बे ग्रीन, लगडा आदि) का बाग बनाना हो उनके मातृ वृक्षों का चयन करते हैं मातृ वृक्ष अच्छी उपज देने वाले व रोग रहित हों।

चयनित मातृ वृक्षो मे 3-4 माह पुरानी स्वस्थ्य एंव रोग रहित शखाऔ का चयन करते है। चयनित शाखाऔ के अग्र भाग से पत्तियों कि सिकेटियर की सहायता से काट लेते है और उसे 7 से 10 दिनों तक पेड पर ही छोड देते हैं, जब चयनित शाखाऔ के अग्र भाग की कलियां (bud) फुटने लगे इस अवस्था में bud stick (कलम) को 10-15 से०मी० लम्बाई पर काट देते हैं स्थानीय रुप से यदि कलम (cion) उपलब्ध नही हो तो अन्यत्र से भी मगाये जा सकते हैं।

खेत में लगे बीजू पौधे (मूल वृन्त) को जमीन से 20 से 30 से०मी० की ऊचाई पर काटने के बाद तने के मध्य में 4 से 5 से०मी० गहरा कट ग्राफ्टिंग चाकू की मदद से लगाते हैं। इतनी ही लम्बाई(4 से 5 से०मी०) का कलम के निचले भाग में V(वी) आकार से छिलते हैं इस छिले हुये कलम के भाग को मूलवृन्त के कटे हुये भाग में लगा देते हैं(फंसा देते हैं) कलम लगाने के बाद इसे अच्छी तरह से दबाते है ताकि पौधे की कलम और मूलवृन्त का कैम्वियम( वृद्दि करने वाली कोशिकाऔ की रिंग) अच्छी तरह से सम्पर्क में आ जायें। इस जोड को बाधने के g पौलीथीन कि पट्टी का प्रयोग करते हैं। जिसकी चौडाई 2 से०मी० और लम्बाई 25-30 से०मी० होनी चाहिये । इस पालीथीन को हाथ की मदद से जोड के पास कस कर बांध देते हैं जिससे अन्दर हवा न रह जाय। पौलीथीन को बाहर से टेप से बांधा जा सकता है कलम के ऊपरी भाग एंव जोड को प्लास्टिक कैप से ढक लेते हैं जिससे कलम मे वाष्पीकरण ज्यादा न हो पाये तथा अन्दर नमी बनी रहे ।

लगभग 45 दिनों बाद कलम मूल वृन्त से जुड पाती है कलम के अग्र भाग में जैसे ही पत्तियां आनी शुरु हो जाये पालीथीन कैप हटा लेते हैं जब तक कलम व मूलवृन्त ठीक से नही जुडते हैं विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि कोई कलम को न हिलाये। ध्यान रहे ग्राफ्ट बांधते समय खेत मे नमी बनी रहे ।

कलम बाधने हेतु उधान विभाग एंव पंजीकृत पौधालयों के प्रशिक्षित मालियों का सहयोग लिया जा सकता है ।

In-situ ग्राफ्टिंग द्वारा विकसित आम के बाग के कई लाभ है

1- पौधौ में तिव्र गति से अधिक बढवार होती है
2- बाहर से कलमी पौधे ला कर लगाने मै जो मृत्यु दर अधिक होती है in-situ ग्राफ्टिंग मै सभी पौधे जीवित व स्वस्थ्य रहते हैं।
3- बाग से जल्दी economical उपज प्राप्त होती है ।
4- क्योंकि कलमों का चुनाव हम स्वयंम स्वस्थ्य मातृ वृक्षो के करते हैं इस परकार फैलने वाले रोगों ( माल फोरमेसन आदि) से बचा जा सकता है
5- बाग मे सिचाई की कम आवश्याकता होती है क्योंकि बीजू पौघे मूल वृन्त की जडे काफी गहरी चली जाती है।
6- बाग मे लगे सभी पौधौ की बढवार एक समान रहती है जबकि नरसरी से रोपित किये गये कलमी पौधौ में मृत्यु दर काफी रहती है हर वर्ष मरे हुये पौधौ के स्थान पर नया जीवित पौध लगाते हैं यह क्रम कई वर्षो तक चलता रहता है इस प्रकार इन बागों के पौधौ की बडवार में समानता नहीं रहती है।
7- कम लागत मै बगीचा विकसित होता है

आम के पौधों को शुरु के वर्षो में पाला काफी नुकसान पहुंचाता है शुरु के तीन वर्षो तक पौधौ को 15 नवम्बर के बाद मार्च तक सूखी घास से चारों तरफ से ढक कर रखें, दक्षिण दिशा की तरफ थोडा खुला छोड दें । पौधौ के थावलों में नमी बनी रहे जिससे पाले का असर पौधौ पर न हो पाये सूखे में पाला पौधौ को ज्यादा नुकसान करता है।

इस प्रकार In-situ ग्राफ्टिंग विधि द्वारा उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में आम के बाग विकसित किये जा सकते है ..

आम में ग्राफ्ट बांधने का लिंक–

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर आदि क्षेत्रों में आम के बाग in situ (यथा स्थान ग्राफ्टिंग ) विधि से ही बिकसित हुए हैं।

उद्यान पंडित श्री कुन्दन सिंह पंवार जी ने भी पाव नैनबाग जनपद टिहरी गढ़वाल में भी यथास्थान विधि से आम के पौधे ग्राफ्ट कर आम का बाग विकसित किया है।राज्य बनने पर आश जगी थी कि योजनाएं कास्तकारौ के हित में बनेगी किन्तु आज भी कोई देखने वाला नहीं है कि योजनाएं धरातल पर उतर भी रही है कि नहीं। उच्च स्तरीय बैठकों में योजनाओं की समीक्षा के नाम पर केवल कितना बजट आवंटित हुआ और कितना अब तक खर्च हुआ इसी पर चर्चा होती है। यदि धरातल पर योजनाएं नहीं उतर रही है तो उसमें कैसे सुधार किया जाय कभी बिचार नहीं होता।जब तक कास्तकारों के हित में योजनाओं में सुधार नहीं किया जाता योजनाएं धरातल पर दिखेंगी ऐसी अपेक्षा करनी बेमानी है।

पूर्व लोकपाल मनरेगा
मोबाइल नंबर 7055505029

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