एल.मोहन प्रथम पुण्य तिथि पर सादर श्रद्धासुमन..
नरेन्द्र कठैत,वरिष्ठ साहित्यकार:
ठीक एक वर्ष पूर्व 06 अक्टूबर 2018! यही वह तिथि थी जिस सांय श्रीनगर से पत्रकार अनुज जगमोहन डांगी ने फोन पर इतला दी कि आप तुरन्त बेस चिकित्सालय पहुंचे। आधे घंटे से कम की समयावधि में श्रीनगर बेस चिकित्सालय पहुंचा। अनुज मनोहर चमोली, जगमोहन डांगी और देवानंद भट्ट की छलछलाती आंखों के साथ आपकी अचेत काया को देखा! यकीन मानिए माॅरचरी के सुपुर्द करने पर भी श्रद्धा सुमन अर्पित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया! विश्वास नहीं हुआ! हो भी कैसे सकता था। न कोई व्यसन, न मीट-मच्छी। चाय से भी दूरी बनाकर रखी! आखिर आपके जीवन में रूकावट कैसे पैदा हो गई?देहावसान से एक दिन पूर्व आपके साथ लगभग 11 मिनट की अवधि के अंतिम वार्तालाप के स्वर आज तक कानों में गूंज रहे हैं-‘ कठैत जी! 07 तारीख को श्रीनगर चलना है! देवानंद के पास आपका कार्ड रखा है – 09 तारीख को ट्रस्ट की मीटिंग है! आपको इस बार जरूर आना है! – 25 तारीख को बी. मोहन नेगी की स्मृति में चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन रखा है!- और फिर …इसी माह के अंत में सिक्किम की यात्रा पर जाना है!विगत कई वर्षों से एक या दो माह के अंतराल में सिक्किम, नागालैंड, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, पंजाब, असम सहित देश के तमाम प्रांतों में से किसी न किसी प्रांत की यात्रा करना आपने अपने रूटीन में शामिल कर लिया था। ललित मोहन कोठियाल कलमकारों के बीच एल.मोहन नाम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे। आपके यात्रा वृतान्त राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित छपते रहे।आप भ्रमण के दौरान पहाड़ में रहे या पहाड़ से बाहर कहीं भी रहे, पौड़ी और पहाड़ सदैव आपके मन मस्तिष्क में रहे। पहाड़ की विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिए आप सदैव सक्रिय रहे। ‘पौड़ी का सफरनामा’ और राज्य आंदोलनकारी दिंवगत बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा पर आधारित पुस्तक ‘संघर्षनामा’ पुस्तकें आपकी दमदार लेखनी के प्रमाण हैं। ‘संघर्षनामा’ पुस्तक की रचना और उसके विमोचन तक की प्रक्रिया के दौरान जो संघर्ष कोठियाल जी को झेलना पड़ा उससे बहुत कम लोग परिचित हैं। टिहरी और पौड़ी पर आपकी दो अन्य पुस्तकें लगभग तैयार हैं। जिनको आप अंतिम पायदान पर छोड़कर महा यात्रा पर निकल पड़े!आप एक जागरूक नागरिक की भांति विभिन्न सामाजिक गतिविधियों के साथ-साथ फेसबुक पर भी नियमित रूप से सक्रिय रहे। दिवंगत चित्रकार बी. मोहन नेगी जी की फेस बुक वाॅल को भी लम्बे समय तक उनकी भावनाओं के अनुरूप संचालित करते रहे। चकबंदी आंदोलन के प्रणेता अग्रज गणेश गरीब जी के आप अंतिम समय तक अभिन्न हिस्सा रहे। सन् 1986-87 में ‘दैनिक जयंत’ में आपने ही मेरी प्रथम हिंदी व्यंग्य रचना को स्थान दिया था।जुकरवर्ग की यह बनावटी फेसबुक वाॅल भले ही आपके जाने से सूनी हो गई हो लेकिन इस बनावटी वाॅल के उस पार आपने मानक पत्रकारिता, कुशल समीक्षा, यात्रा वृतान्त, सारगर्भित विश्लेषणों की जो दीवार खड़ी की है उनके लिए आप सदियों तक याद किये जाते रहेंगे !समय-समय पर आकाशवाणी पौड़ी, नजीबाबाद एंव देहरादून से प्रसारित आपकी कुछेक वार्ताएं मित्रों के सहयोग से संग्रहित कर पाया हूं। समग्र वार्ताएं उपलब्ध हो जाने पर उन्हें पुस्तकाकार रूप देने के लिए प्रयासरत हूं।कोठियाल जी! आप भले ही आज भौतिक जगत से दूर हैं लेकिन सदैव यूं ही स्मृति पटल में बनें रहें! प्रथम पुण्य तिथि पर सादर श्रद्धासुमन..