पौड़ी की सितोनस्यूं पट्टी के कठूड़ गाँव की “हलधर किसान” महिला कौशल्या दिखा रही पहाड़ी समाज को आईना!..

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पौड़ी की सितोनस्यूं पट्टी के कठूड़ गाँव की “हलधर किसान” महिला कौशल्या दिखा रही पहाड़ी समाज को आईना!..
जागो ब्यूरो एक्सक्लूसिव:

भारतीय इतिहास में वीरांगनाओं की अनेक शौर्य गाथाएं हैं, चाहे वह झांसी की रानी रही हो या उत्तराखण्ड की तीलू रौतेली सब ने अपने शौर्य के आगे शक्तिशाली मर्द शत्रुओं को भी नतमस्तक किया है,आज हम आपको एक ऐसी ही महिला से रूबरू करवा रहे हैं,जो किसी भी मायने में वीरांगनाओं से कमतर नहीं!इनका नाम है कौशल्या देवी,गाँव कठूड़,पट्टी सितोनस्यूं,जनपद पौड़ी गढ़वाल की यह महिला तीन जवान बेटियों की माँ है,तीनों जवान बेटियां बीस,अट्ठारह और सोलह साल की हैं,बड़ी बेटी बारहवीं में पढ़ती है और एक बेटा जो कि सबसे छोटा है,अभी आठवीं में पढ़ रहा है,लगभग एक दशक पहले कौशल्या का पति शराब की लत के चलते चल बसा,तब से यह महिला खुद ही खेतों में हल लगाकर और मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पाल रही हैं,इस महिला के जीवट का आलम यह है कि बीमार होने के बावजूद,वो वक्त और हालात से समझौता करने को बिल्कुल भी तैयार नहीं है और आज भी सितोनस्यूं क्षेत्र के आठ गाँवों कठूड़,नवन,जामला, स्यलिंगी,कंडुल,पंचुर और सिरकुन आदि गाँवों के खेतों को अकेले हल लगा कर आबाद कर रही है,इस इलाके से भारी मात्रा में लोग पलायन कर चुके हैं और ज्यादातर लोग प्रदेश की राजधानी देहरादून और देश की राजधानी दिल्ली जा बसे हैं,गाँवों में अब जो लोग बच भी गये हैं,वे खेती-बाड़ी करना या तो पसंद नहीं करते,क्योंकि उत्पादों के लिए न तो मार्केट उपलब्ध हो पाता और न जंगली जानवर ही लोगों को खेती करने देते हैं,इन विपरीत हालातों में यह महिला हर साल हल लगाकर और मजदूरी करके करीब दस हजार कमा लेती है,जिससे उन्होंने एक जोड़ी हल-बैल भी लिया हुआ है,जब वह बैलों की जोड़ी के साथ खेतों में उतरती हैं,तो सारी दुनिया अचरज में डूब जाती है कि कैसे एक महिला खेतों को अपने दम पर ही आबाद कर रही है!इस महिला के जीवट से प्रेरणा लेकर कोट ब्लॉक के सितोनस्यूं क्षेत्र के कई नवयुवक भी अब खेती करने को उत्साहित हो रहे हैं और इन लोगों ने “महाकाल सेना” के माध्यम से कठूड़ गांव के काफी बड़े इलाके में खेती किसानी करने की ठानी है,इसके सूत्रधार हैं स्थानीय युवा आलोक “चारु”और महाकाल सेना के अध्यक्ष राकेश रावत आप दोनों ने,इलाके के अन्य युवाओं और कुछ महिलाओं को साथ में लेकर यहां पर खेती के लिये जमीन तैयार करना सुरू कर दिया है,आजकल खेतों में कौशल्या अपने बैलों की जोड़ी के साथ हल लगा रही हैं,तो अन्य लोग जमीन से कंकड़-पत्थर,झाड़ी आदि हटाकर खेतों को खेती के लिये तैयार कर रहे हैं, पास ही प्राकृतिक जलस्रोत भी है, जिससे सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध हो जायेगी,यह सारा घटनाक्रम कोरोना महामारी के इस दौर में उत्तराखण्ड सरकार और स्थानीय युवाओं के लिये एक बड़ा सबक है,कि जब एक महिला जो कि चार बच्चों की माँ है वह बीमार होने के बावजूद अपना शरीर तोड़ हल लगा रही है, तो क्यों पहाड़ का स्थानीय युवा और कोरोना महामारी के चलते देश विदेश से वापस आये हमारे युवा खेती नहीं कर सकते! इसका सबक कौशल्या देवी जैसी महिलाओं से ही सीखना होगा,युवाओं को ही नहीं यह सबक उत्तराखण्ड की उन्नीस साल से अदला-बदली हो रही घिसी-पिटी सरकारों के नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स को भी सीखना है,कि कैसे उत्तराखण्ड के बंजर खेतों को आबाद कर यहां पर स्थानीय युवाओं को रोजगार दिया जा सकता है,इसके लिए यह भी जरूरी है कि स्थानीय लोग जो कि उत्तराखण्ड से बाहर भी चले गए हैं,अपनी बंजर पड़ी भूमि लीज पर इन युवा बेरोजगारों को खेती करने के लिये दें, हमारे लोग खेती-किसानी करेंगे और खेती-किसानी के माध्यम से बड़े तादाद पर लोगों को रोजगार भी मिलेगा,उत्तराखण्ड का आर्गेनिक कृषि उत्पाद पूरे देश में ऑर्गेनिक फूड के लिए विख्यात हो सकता है,बस जरूरी यह है कि इस हलधर किसान महिला कौशल्या देवी से सबक लिया जाय और सरकार बस इतना भर कर दे कि ऐसी महिलाओं और युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिये खेती को जंगली जानवरों से बचाने को घेर-बाड़,खाद-बीज और नवीनतम कृषि तकनीक आदि उपलब्ध करा कर उत्पाद खरीदने का जिम्मा ले ले,अगर इतना भर हो जाए तो उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद के सितोनस्यूं पट्टी का कठूड़ गाँव ही नहीं गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डल के सभी पहाड़ी जनपदों के खेत बीते जमाने की तरह एक बार फिर से हरी भरी खेती से लहलहा उठेंगे और कोरोना के नाम पर “रिवर्स पलायन” उत्तराखण्ड के लिये अभिशाप नहीं वरन वरदान साबित हो जायेगा,लेकिन इन सब उम्मीदों की उड़ानों के बीच पलायन के नाम पर चिन्तन करने वाला “पलायन आयोग”और उत्तराखण्ड सरकार कौशल्या देवी को न भूल जाये और इस गरीब मगर जबरदस्त जीवट वाली महिला के जज़्बे का सम्मान करते हुये उन्हें जल्द आर्थिक राहत और पुरुस्कार देकर इस मिट्टी का ख़ुद पर बढ़ता भारी कर्ज़ तो कुछ हल्का करे!

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