Passing through “Kandi road” is as tough as crossing “Bagha Border”..courtesy Corbett Officials

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गढ़वाल से कुमांऊँ को जोड़ने वाले “कंडी मार्ग” से गुजरने को कॉर्बेट नेशनल पार्क के अधिकारियों ने बनाया “बाघा बॉर्डर ” पार करना…

गढ़वाल से कुमाऊँ जाने के लिए कोटद्वार के पास पाखरो गेट से कॉर्बेट नेशनल पार्क के अंदर से गुजर कर निकटतम रास्ता है, जो कोटद्वार से रामनगर की दूरी को मात्र 85 किलोमीटर कर देता है,इस मार्ग को कंडी मार्ग भी कहा जाता है ,सरकारी स्तर पर कई सालों से इस मार्ग को सामान्य यातायात के लिए खोलने की बात, पिछले कई सालों से हो रही है, लेकिन हकीकत ये है कि कॉर्बेट नेशनल पार्क के कुछ तानाशाह अधिकारियों ने इस मार्ग से गुजरने की प्रक्रिया भी इतनी जटिल बनाई हुयी है, कि सामान्यतः इस मार्ग से किसी भी आम आदमी का गुजरा मुश्किल है ,आजकल गर्मियों के दिन हैं, लेकिन रामनगर के पास इस मार्ग के झिरना गेट से सुबह 8 बजे से पहले आम आदमी को प्रवेश नहीं लेने दिया जाता, जबकि सुबह 6 बजे से ही पर्यटकों को यँहा से न केवल इंट्री दी जा रही है, बल्कि 5 साल से छोटे बच्चों को भी बिना इंट्री के पार्क के अन्दर भेजा जाता है ,कोटद्वार से रामनगर आते हुए कालागढ़ के पास से प्लैटिनम जुबली गेट से अंदर आने के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ती है ,जंगल के अन्दर वाहन स्वामी से वाहन के रजिस्ट्रेशन की छायाप्रति माँगी जाती है, ऐसे में कई लोग वंही से वापस लौट जाते हैं या फिर कालागढ़ बाजार से रजिस्ट्रेशन की छायाप्रति करवाने में यात्री का अनावश्यक समय बर्बाद होता है ,अभी 15 जून के बाद इस मार्ग को आम जनमानस के लिए बंद कर दिया जायेगा , लेकिन यँहा से पर्यटकों की आवाजाही बनी रहती है, आखिर ये दोहरे मानदण्ड क्यों ?,कॉर्बेट नेशनल पार्क के दुर्गादेवी गेट से अन्दर पौड़ी जनपद के कई गाँव भी मौजूद हैं, लेकिन कभी हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देकर तो कभी तानाशाही दिखाकर कॉर्बेट प्रशासन ग्रामीणों का रास्ता बंद कर देता है, ऐसे में कई गाँवों के लोग यंहा से पूरी तरह पलायन कर चुके हैं, इन्ही ग्रामीणों में एक है अजय भदोला जो वाइल्डलाइफ कैम्प बनाकर यहाँ रोजगार करना चाहता है,लेकिन जँहा एक ओर कॉर्बेट के अंदर कई आलीशान रिसोर्ट बन चुके हैं, वंही उसके गाँव का रास्ता वन विभाग ने हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए बंद किया हुआ है, जिसके लिए “जागो उत्तराखण्ड” अजय भदोला और तमाम गढ़वाल के लोगों के लिए माननीय उच्च न्यायालय में लड़ाई भी लड़ रहा है ,इस साल जंगल में लगी भीषण आग को बुझाने में पूरी तरह नाकाम रहा वन विभाग जब तक ऐसे ही स्थानीय लोगों का उत्पीड़न करता रहेगा, तब तक ग्रामीणों के आक्रोश से वनों को बचाना नामुमकिन होगा ,समय आ गया है गहरी नींद में सोने वाले वन विभाग के मंत्री और आला अधिकारी जाग जायें ,अन्यथा बहुत देर हो जाएगी और पूरा पहाड़ खाली हो जायेगा …

 

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