सीएम के गाँव के नीचे बह रही नयार नदी में विलुप्तप्राय महाशीर मछली के लिये खतरा बने रिवर ट्रेनिंग के आधा दर्जन से ज्यादा परमिट!..

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सीएम के गाँव के नीचे बह रही नयार नदी में विलुप्तप्राय महाशीर मछली के लिये खतरा बने रिवर ट्रेनिंग के आधा दर्जन से ज्यादा परमिट!..

जागो ब्यूरो विशेष:

पौड़ी जनपद में इस वर्ष खनन राजस्व बटोरने के नाम पर छोटी पहाड़ी नदियों का सीना भी छलनी कर दिया गया है,मुख्यमन्त्री के पैतृक गाँव खैरासैंण्ड के ठीक नीचे बह रही पश्चिमी नयार नदी में ही पौड़ी प्रशासन ने आधा दर्जन रिवर ट्रेनिंग के परमिट जारी किये हैं,जबकि नयार नदी में रिवर ट्रेनिंग की आवश्यकता ही नहीं है,क्योंकि रिवर ट्रेनिंग की वँहा आवश्यकता होती है,जहां नदी में भारी मात्रा में आरबीएम जमा हो गया हो,जिससे नदी का बहाव प्रभावित हो रहा हो और नदी आसपास के इलाके में कटाव कर सकती हो,जिससे उसके बहाव को चैनेलाइज करके बीच में लाना नितान्त आवश्यक हो,लेकिन इन नयार नदियों में तो कई वर्षों से ना तो बाढ़ आयी है और न ही यहां पर आरबीएम इतना ज्यादा है,कि नदी को चैनेलाइज करने की जरूरत हो,अलबत्ता इतने सारे रिवर ट्रेनिंग के परमिट दिये जाने से यहां खतरे की जद में विलुप्त प्राय महाशीर मछली का प्रजनन क्षेत्र जरूर आ गया है,जो कि व्यास घाट से लेकर पश्चिमी और पूर्वी नयार में ऊपर की ओर ताजे बहते पानी में अपने अण्डे और बच्चे देती है,लेकिन बड़ी-बड़ी पोकलैंड मशीनों और जेसीबी मशीनों से इन नदियों नदी का सीना भी छलनी कर दिया है,हैरानी है कि ऐसा तब हुआ है जबकि मुख्यमन्त्री का गाँव खैरासैंण्ड इसी नयार नदी के ऊपर स्थित है और सतपुली में तो मत्स्य विभाग की करोड़ो की लागत से बनी महाशीर प्रजनन और संरक्षण योजना भी संचालित है अर्थात शायद मुख्यमन्त्री को भी इसमें कुछ गलत नहीं लगता,समझ नहीं आता कि कैसे इतने सारे रिवर ट्रेनिंग के परमिट इन छोटी पहाड़ी नदियों में दे दिये गये हैँ,जाहिर है जनपद पौड़ी प्रशासन,जिसने इन नदियों का मुआयना कर इतने सारे रिवर ट्रेनिंग के परमिट जारी किये हैं, की कार्यशैली पर गम्भीर प्रश्नचिन्ह हैं,पौड़ी जनपद में इसके अलावा पूर्वी नयार में दो,यमकेश्वर में हेंवल नदी में दो,कोटद्वार में भी सुखरो नदी में एक और खोह नदी चार रिवर ट्रेनिंग समेत कुल सात परमिट जारी किये गये हैं,कुल मिलाकर पूरे जनपद में पौड़ी प्रशासन ने अठारह रिवर ट्रेनिंग के परमिट जारी किये हैं, जो हैरतअंगेज है,हालांकि श्रीनगर में अलकनन्दा में पौड़ी प्रशासन ने कोई रिवर ट्रेनिंग का का परमिट जारी नहीं किया गया,लेकिन यंहा टिहरी प्रशासन ने जीवीके के डैम बनने के बाद मृतप्राय अलकनन्दा नदी जिसमें न आरबीएम है न पानी,फिर भी रिवर ट्रेनिंग के परमिट जारी कर दिये,यँहा हो रहे बेहताशा अवैध खनन की “जागो उत्तराखण्ड” की खबर का संज्ञान लेते हुये टिहरी की कीर्तिनगर तहसील के उपजिलाधिकारी ने खननकारियों और क्रशर स्वामियों पर क़रीब साठ लाख का जुर्माना भी लगाया,उधर कोटद्वार में तो नदियों में बेहिसाब अवैध खनन की खबर उठाए जाने पर स्थानीय पत्रकार राजीव गौड़ और उनके साथी समाजसेवी मुजीब नैथानी के साथ खनन माफियाओं की मुठभेड़ भी हुयी,इस घटना के बाद ज्यादातर पत्रकारों ने अवैध खनन के विषय को उठाना ही छोड़ दिया,क्योंकि सबको अपनी जान माल का तो खतरा है ही,ऊपर से झूठे मुकदमे में फंसाए जाने का डर भी,लेकिन आज तीस जून को जब खनन सीजन फिलहाल समाप्त हो रहा है और यदि और पैसा कमाने के लालच में खनन सीजन को विस्तारित नहीं किया गया तो बरसात में फ़िलहाल खनन बंद रहेगा,लेकिन क्या इस समय हम सभी के लिये यह आंकलन करना जरूरी नहीं है कि क्या पहाड़ी नदियों में रिवर ट्रेनिंग की आवश्यकता है? कम से कम नयार या पहाड़ी नदियों में तो बिल्कुल भी नहीं! क्योंकि यहां पर आरबीएम की मात्रा बिल्कुल ना के बराबर है,जबकि कोटद्वार और श्रीनगर में भी साल दर साल रिवर ट्रेनिंग के परमिटों को दिए जाने का कोई औचित्य नहीं है,क्योंकि जब हर साल यहां से रिवर ट्रेनिंग के नाम पर नदियों का सीना छलनी किया जा रहा है,तो क्यों हर साल नदी को चैनेलाइज करने की जरूरत पड़ रही है?यह एक बड़ा सवाल है,ख़ैर पर्यावरण से बेहिसाब छेड़छाड़ और जीवों को सताने से पैदा हुये कोरोना संकट से शायद शासन-प्रशासन को खौफ़ न हो ,लेकिन हम -आप को इससे खौफ़ खाना चाहिये,क्योंकि आपदाओं में हम आपके घर ही उजड़ेंगे और दुःख बीमारी भी हमारे ही हिस्से आयेगी!

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