Unite or un united opposition before 2019?

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एकीकरण से पहले ही बिखरने की तैयारी..

सुनिल नेगी, अध्यक्ष, उत्तराखण्ड पत्रकार फोरम

कितनी अजीब और हैरतंगेज बात है कि अभी गैर भाजपा राष्ट्रीय गठबंधन की एक भीनी सी शुरुआत भर हुई थी या यूं कहिये की भाजपा और मोदी विरोधी महागठबंधन को सिरे चढाने का सही वक्त आया ही था कि दलितों की राष्ट्रव्यापी नेत्री मायावती इस भाजपा और मोदी विरोधी नाव में छेद करने की बाकायदा औपचारिक शुरुआत ही कर दी, कौन नहीं जानता है कि राष्ट्रीय पैमाने पर हजारों खामियों के बावजूद आज भी चमत्कारिक नेतृत्व के संदर्भ गैर भाजपायी नेता चाहे वे किसी भी दल का हो मौजूदा प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले बीस नहीं बैठता,खासकर इसलिये भी क्योंकि विपक्ष का हर नेता आज भी चमत्कारिक छवि और व्यवहार के दृष्टिकोण से सम्पूर्ण रूप से मोदी की विलक्षण छवि के सामने उन्नीस ही है,बीस या इक्कीस नहीं, पर हाँ जाति, संप्रदाय, धर्मनिरपेक्ष और भाषा के दृष्टिकोण से यदि देखा समझा जाय तो गैर भाजपाई दलों के पारदर्शी और ईमानदारी के एकीकरण के कृत्य और कोशिशें इन्हें जरूर एक ऐसे ठोस मुकाम तक पहूँचा सकते हैं,जिसे हम मौजूदा भाजपा गठबंधन केन्द्र सरकार के लिए एक अत्यंत सशक्त चुनौती के रुप में देख सकते हैं, खासकर देश में जल्द ही सम्पन्न होने जा रहे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के चुनावों में जहाँ भाजपा सरकारों के खिलाफ जबर्दस्त एंटी इंकम्बेंसी दिखाई देती है,
हाल के कर्नाटक राजनीतिक घटनाक्रम, कई राज्यों के संसदीय व विधानसभा उपचुनावों में जिसमे उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र आदि राज्य शामिल हैं सन्युक्त गैर भाजपायी विपक्षी एकता ने भाजपा को खासी शिकस्त देकर ये साफ तौर पर स्पष्ट कर दिया है, कि यदि सभी गैर भाजपायी दल और क्षेत्रीय पार्टियां ईमानदारी से राज्यों और राष्ट्रीय चुनाओं में एक कामन मिनिमम प्रोग्राम्स के तहत एक झंडे और सर्वमान्य नेता के नेतृत्व तले एक अत्यंत प्रभावशाली एंटी बीजेपी गठबंधन बनाकर प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और भाजपा एनडीए गठबन्धन को सीधी चुनौती देते हैं, तो निश्चित तौर पर 2019 और उससे पहले तीन राज्यों के चुनाओं में ये दल भाजपा को जबर्दस्त पठकनी दे सकते हैं, गौरतलब है कि 2014 और उसके बाद के मोदी करिश्मे और आज के हालातों में खासा अन्तर देखने को मिला है,
भले ही मोदी करिश्मे ने देश के 20 राज्यों में सत्ता हासिल कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया हो पर राजनैतिक समीक्षकों का आज भी मानना है कि देश के कृषि सेकटर, किसानों की बढती आत्महत्याओं की घटनाओं, पेट्रोल-डीजल और खाध्य पदार्थों की बड़ती कीमतें, कश्मीर समस्या के विकराल रुप धारण करने, देश में गौ तस्करी के नाम पर हत्यायें, पत्रकारों की नृशंस हत्यायें, निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी , बाहरी बैंको से काला धन ना ला पाना, नोटबन्दी से आम जनता द्वारा झेली गयी प्रताड़ना, प्रधानमन्त्री के अत्यन्त खर्चीले विदेशी दौरे , महिलाओं पर निरंतर बढ़ रहे अत्याचार, अल्पसंख्यकों में खौफ और उनकी हत्या आदि,ऐसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं,ज़िनके चलते देश का अधिकांश अवाम भगवा पार्टी और उनके नेताओं से बुरी तरह ख़फ़ा है,नतीजतन देश की गैर भाजपाई विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी , वामपंथी दल, आरजेडी, तिलंगाना पार्टी, लोक दल, तृणमूल कांग्रेस, दक्षिण की अन्नाद्रमुक पार्टी आदि के पास आज एक बहुत ही बेहतरीन मौका है की वे सब अपने सभी संकीर्ण राजनीतिक हितों को त्यागकर मोदी और उनकी पार्टी का ज़मकर मुकाबला करें,इस गठबंधन को वास्तविक एवं ठोस अमलीजामा पहनाने की कोशिश में तृणमूल कांग्रेस की तेजतर्रार नेत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने कुछ महीनों पहले खासी मशक्कत की और दिल्ली आकर सोनिया, राहुल, शरद पवार, शारदा यादव सहित लगभग सभी नेताओं से मिली, उसके बाद ये सभी नेता कांग्रेस व जनता दल ( सेकुलर ) गठबन्धन सरकार के शपथग्रहण समारोह में बंगलोर में भी मिले, सभी की बाडी लेंगुएज पासिटिव थी, ऐसा लगने लगा था कि आने वाले दिनों में भले ही देर से पर ये गैर भाजपा गठबन्धन कुछ सशक्त नतीजे दिखायेगा और 2019 में भाजपा एनडीए गठबन्धन को दिन में तारे दिखाने जैसी स्थिति में पहूँचेगा,लेकिन 16 जून के बहुजन समाज पार्टी द्वारा बिना किसी राय मशविरे के मायावती को इस गैर भाजपायी गठबन्धन का प्रधान पद का उम्मीदवार घोषित करने से ऐसा लगता है मानों इस गठबन्धन के औपचारिक श्रीगणेश होने से पहले ही तबाही के गोले बरसने शुरू हो गये हैं, यही तो भाजपा और मोदीजी चाहते हैं और यही वजह है की वे पुन: सत्ता में लौट सकते हैं!आप क्या कहेंगे मित्रो?

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