तीलू की कर्मभूमि को उपेक्षित कर वीरबाला के नाम सरकार बांटे अपनों को पुरस्कार!..

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तीलू की कर्मभूमि को उपेक्षित कर वीरबाला के नाम सरकार बांटे अपनों को पुरस्कार!..

जागो ब्यूरो एक्सक्लुसिव:

वीरांगना तीलू रौतेली संभवतःविश्व की एकमात्र ऐसी वीरांगना हैं,जिन्होंने15 साल की बाल्यावस्था से 22 साल 8 महीने की उम्र में वीरगति को प्राप्त करने से पूर्व अपने जीवन के 7 वर्षों में कत्यूरी आक्रांताओं से लगातार 7 से ज्यादा युद्ध लड़ कर अभूतपूर्व वीरता और पराक्रम का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुये इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाया है,लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि पौड़ी जनपद के बीरोंखाल ब्लॉक में स्थित उनकी कर्मभूमि कांडा मल्ला का इलाका आज भी हर तरह से उपेक्षित है,कांडा मल्ला में स्थित उनका ऐतिहासिक किला आज जर्जर होकर खण्डहर होने की स्थिति में आ गया है,जबकि यह किला देश-दुनिया और उत्तराखण्ड के लिये एक अनमोल धरोहर है,पूर्वी नयार के किनारे स्थित वह स्थान भी निर्जन ही पड़ा हुआ है,जँहा तीलू ने अपना बलिदान दिया था,उन्ही के वंशज गोर्ल्या रावत वीर जसवंत सिंह रावत,जिन्हें 1962 भारत -चीन युध्द में अकेले 72 घंटो तक चीन की सेना से युध्द लड़ते हुये सैकड़ों चीनी सैनिकों को मारने के कारण “हीरो ऑफ़ नेफा” के नाम से भी जाना जाता है के नाम पर भी यंहा कुछ नहीं हुआ है,यँहा के स्थानीय युवा अब तीलू के बलिदान से सींची गयी भूमि को अब अपनी मेहनत के पसीने से सवारना चाहते हैं,लेकिन उत्तराखण्ड के पर्यटन विभाग और यन्हा से लगातार दो बार निर्वाचित विधायक दिलीप रावत का इस इलाक़े को ऎतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित का कोई प्रयास धरातल पर उतरता नहीं दिखायी देता,जिसको लेकर स्थानीय लोगों में काफ़ी रोष है,लोगों की मांग है कि तीलू के गाँव कांडा मल्ला को एक राज्य धरोहर के रूप में विकसित किया जाए,साथ ही उनके बलिदान स्थल पर एक झील का निर्माण कर और बलिदान स्थल को सड़क मार्ग से कनेक्ट कर उसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए,जिससे कि यहां पर आने वाले पर्यटक वीरबाला तीलू के अभूतपूर्व बलिदान को अपनी आँखों से देख-समझ कर उसे महसूस कर सकें,”जागो उत्तराखण्ड” ने 8 अगस्त को उनके 359 वें जन्मदिवस के अवसर पर उनकी कर्मभूमि कांडा मल्ला का दौरा किया और आपके सामने कुछ ऐसे हैरतअंगेज तथ्य लेकर आया है,जो शायद आपने पहले अपनी आँखों से नहीं देखे होंगे!उम्मीद है सरकार के नुमाइंदे भी इस रिपोर्ट को देखेंगे और तीलू की कर्मभूमि का तिरिस्कार कर अपनों को उनके नाम पुरस्कार बाँटने का बेहूदा मज़ाक बन्द करेंगे!

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