देहरादून डीएफओ ने भूमाफियाओं से मिली भगत कर कटवा दिए हरे फलदार पेड़, देखिए वीडियो…

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कुछ लोगों पर पद की हनक ऐसे आती है कि वो अपने कर्तव्यों के निर्वहन को निजी हित के आगे कुछ नहीं समझते हैं। ऐसा ही कुछ देहरादून के नए नए डीएफओ नीरज शर्मा ने किया। जिस बाग में पेड़ों को काटने की अनुमति लगभग 1 वर्ष से नहीं दी जा रही थी उसी बाग में इन महोदय द्वारा अपने एक माह के कार्यकाल पूरा होने से पूर्व ही दे दी गई। जागो उत्तराखंड द्वारा कुछ माह पूर्व एक खबर प्रकाशित की थी कि कैसे भू माफिया देहरादून के घने बागों में अपने चंद सिक्को के लालच के लिए हरे भरे आम लीची के पेड़ों को काटकर अवैध प्लॉटिंग कर रहे हैं।

उसी क्रम में जब हमने देहरादून के बालावाला के खसरा नम्बर 558 में लगे घने बाग को बचाने की कोशिश की तो पता लगा कि भूमाफिया द्वारा कैसे बागों को काटने के लिए रजिस्ट्री करते समय पेड़ों की संख्या को कम दर्शाया जाता है जिससे एक तो राजस्व चोरी हो साथ ही उनको पेड़ों को काटने में आसानी हो। इसी नीयत से क्रेता द्वारा इस जमीन को खरीदते हुए दो रजिस्ट्री करते हुए केवल 16 पेड़ों को दर्शाया गया। जबकि देहरादून वन प्रभाग की लच्छीवाला रेंज के 10 जनवरी 2024 के पत्र में इसी जमीन में 68 हरे खड़े व एक पेड़ के अवैध पातन करने का जुर्म का उल्लेख है। इस प्रकरण की जानकारी जब हमें हुई तो हमने अपर जिलाधिकारी राजस्व व राज्य मानवाधिकार आयोग को इसकी शिकायत की । राज्य मानवाधिकार द्वारा जब जांच उपजिलाधिकारी डोईवाला को दे दी गई । 23 फरवरी 2024 को एक पत्र डीएफओ देहरादून कार्यालय में दिया गया जिसमें राज्य मानवाधिकार आयोग में चल रहे वाद का हवाला देकर यह आग्रह किया गया था कि जब तक वाद का निस्तारण नहीं हो जाता तब तक उक्त खसरे में पेड़ों को काटने की अनुमति ना दी जाय। पूर्व डीएफओ द्वारा तो उस आग्रह को मान लिया गया था परंतु नए डीएफओ के आते ही वहां पर पेड़ों को काटने की सक्रियता बढ़ने लगी। जिसकी शिकायत पुनः डीएफओ देहरादून को 1 अप्रैल 2024 को की गई, जिस पर उनके द्वारा जांच उप प्रभागीय वनाधिकारी ऋषिकेश को जांच सौंपी गई। अभी जांच आगे भी नहीं बढ़ी थी कि डीएफओ नीरज शर्मा द्वारा भू माफियाओं के साथ सांठ गांठ कर 6 अप्रैल को एक ही खसरे में 5 हरे पेड़ों को काटने की अनुमति जारी कर दी।

इस अनुमति को देने का आधार आधार यह बनाया गया कि उक्त पेड़ों पर फल नहीं आते जबकि मौके पर जाकर जब हम कटे हुए पेड़ों की टहनियों को देखा तो आम की बौर आई हुई है जो आप भी वीडियो में भी देख सकते हैं। उद्यान विभाग से जब हमने इस बारे में पूछा तो वह गोल मोल जवाब देते हुए ठीकरा वन विभाग के ऊपर डालने लगे । यदि 5 कटे हुए पेड़ों के ठुंडों को देखें तो उनमें से 4 ठूंड 4 अलग अलग जगहों पर तो दो प्लॉटों की विभाजन की सीमा पर हैं व एक पेड़ एक प्लॉट की बीच में है। इसका सीधा सा मतलब है कि उद्यान व वन विभाग की मिली भगत से भू माफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए पेड़ों को काटने की साजिश रची गई। यदि दोनो विभाग इस पेड़ कटान के खेल में संलिप्त नहीं होते तो अपने पत्रों में बौर ना आने के कारण पेड़ों को काटने की अनुमति के स्थान पर हार्ड लॉपिंग का जिक्र भी कर सकते थे जो कि इन पत्रों में कहीं नहीं है। परंतु हार्ड लॉपिंग होने से इनको जो लाभ पेड़ काटने की अनुमति से मिला वह लाभ प्राप्त नहीं होता। हमारे द्वारा इस प्रकरण में डीएफओ नीरज शर्मा की भू माफियाओं से मिली भगत की शिकायत प्रमुख वन संरक्षक (hoff) उत्तराखंड व राज्य मानवाधिकार आयोग को कर दी गई है। अब देखते हैं आगे क्या होता है? डीएफओ नीरज शर्मा आगे भी इसे ही पेड़ों को काटने व धारा 4 की जमीनों में अतिक्रमण के प्रकरणों को किस तरीके से खुर्द बुर्द करते हैं या ……

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